लेखक की कलम से

थोड़ी मां होने लगी हूं…

 

लगता है

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!

 

दो मिनट हाथ जोड़ने को

पूजा कहती,

भगवान को भोग लगा

धूप बाती दिखाने लगी हूँ मैं!

लगता है !

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!!

 

कुछ खास बनने पर

रसोई को बार बार झांकती

अब व्यंजनों को धीमी आंच पर

सोंधे पकाने लगी हूँ मैं!

लगता है

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!!

 

ठंड में सोंठ तिलवे देख

मुँह सिकुराती,

अब खुद ही गुड़ की हल्दी

बनाने लगी हूँ मैं!

लगता है

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!!

 

पापा के देर से आने पर

बेसब्र इंतजार करती,

अब पति के बेवक्त होने पर

फिक्र से झल्लाने लगी हूँ मैं!

लगता है

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!!

 

जेबखरचे को धडडले से

मिनटों में उड़ाती,

अब घरखरचे से

कुछ कुछ बचाने लगी हूँ मैं!

लगता है

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!!

 

हर महीने अलमारियां

पुराने से नई करती,

अब कतरनों से भी

सुजनी बनाने लगी हूँ मैं!

लगता है

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!!

 

फ़क़त सिर्फ इतना है की तुझमे

अब “नानी” देखने लगी हूँ मैं!

लगता है

थोड़ी सी मां होने लगी हूँ मैं!!

©विजया एस कुमार

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