लेखक की कलम से
खामोशी…
शोरगुल के बीच भी
बसती है एक खामोशी
झोपडी में भुख के कृदन बीच
बसती है खामोशी
जब नहीं पड़ पाती
अस्मिताओं के हाथों से
रोटी पर धाप
नेता के भाषण के
शोरगुल में भी
बसती है एक खामोशी
जो बेरोजगार युवकों के
जमी रहती है शीशा पर
धुल समान खामोशी
संसद के शोर के बीच
पिस रही है एक खामोशी
सदियों से
उन्हें दीवारों में है दफ्न
स्नाही ने दिखाये
अँगुठे को सपने
बिना इलाज हुये मृत्यू के
आलाप के बीच भी है एक
खामोशी
जो भरी है खाली दवा की शीशी
में
तैरती है जो झूठे चुनावी वायदों में
चिड मैना के कलरव बीच
खेत खलियानों में
रफ्तार पकड़ रही है एक खामोशी
जो भू के गर्भ में
प्रतिक बनकर बंजरता का
पसरी है एक खामोशी