लेखक की कलम से

एक दंगा : यादगार पर दर्दभरा …

 

अंतिम किस्त

दंगों की जांच हेतु कांग्रेसी सीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में समिति गठित की। इसी जांच के दौरान जस्टिस सक्सेना अवसाद के शिकार हो गए थे क्योंकि उनके पुत्र का अपहरण हो गया था। आज चालीस साल हो गए। यह जांच रपट राज्य विधान मंडल में प्रस्तुत ही नहीं की गयी। हालाँकि अबतक इक्कीस मुख्यमंत्री पद संभाल चुके हैं। एक भी पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी। कोई न तो दण्डित हुआ, न कोई मुआवजा दिया गया। मूलतः यह दलित बनाम मुसलमान दंगा था। दंगे के पांच माह पूर्व एक दलित युवती को मुस्लिम युवक (मार्च 1980) उठा ले गए थे। मारपीट हुई। ईदगाह के आस पास खटिक और सुन्नी बस्तियां हैं। कई बार विवाह पर दलित जोर से संगीत बजाते हैं तो उनपर मस्जिद से हमला होता है।

 

इन दंगों का कारण बताया न्यायमूर्ति सक्सेना ने कि राजनेताओं ने मुसलमान वोट बैंक के दबाव में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया था। मुरादाबाद के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक श्री धर्मवीर मेहता, जो पुलिस महानिदेशक हुए, ने कहा था कि “कठोर (इस्पाती) कदम से ही शांति स्थापित होगी।”

 

इस सन्दर्भ में तत्कालीन पुलिस उपमहानिदेशक (बरेली जोन) प्रकाश सिंह (बाद में कई उच्च पुलिस पदों पर रहे), ने मुझे बताया था कि विभाजन की बेला पर मोहम्मद अली जिन्ना ने कराची से ढाका (तब पूर्वी पकिस्तान) के संपर्क मार्ग हेतु गलियारा माँगा था, जिसे सरदार पटेल ने ख़ारिज कर दिया था। पश्चिम उत्तर प्रदेश में उस गलियारे में संभल, मुरादाबाद, रामपुर आदि समावेशित हो जाते। यह सब घनी मुस्लिम आबादी वाले स्थल हैं । यह खास कारण है जिससे ये शहर हिन्दू-मुस्लिम तनाव का आज भी केंद्र बने रहते हैं।

स्मरण रहे कि 1946 में पाकिस्तान के पक्ष में यहाँ व्यापक समर्थन मुस्लिम लीग को मिला था।

 

यह दंगा संजय गाँधी द्वारा नामित (9 जून 1980) मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह हेतु अपशकुन लेकर आया  था। उसी दौर में पूर्वी उत्तर प्रदेश में भीषण बाढ़ का प्रकोप हुआ था। शासन दंगा और बाढ़ से ग्रसित था। मेरी एक विशेष रपट “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” में छपी थी। शीर्षक था : “UP C.M. faces flood in the east and blood in the west.” बहुत चर्चित हुई थी तब।

 

मेरे जेहन में दो दंगों की याद अभी शेष है : अहमदाबाद (1969) तथा हैदराबाद (1984)  जिन्हें मैंने देखा और लिखा। उनकी बाबत फिर कभी।

    ©के. विक्रम राव, नई दिल्ली    

एक दंगा : यादगार पर दर्दभरा ….

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