लेखक की कलम से

तानाशाह के वध स्थान पर…

मेरे साथ कदम से कदम
मिला कर चलने वाले
तुम और तुम जैसे लड़कों पर
एक शर्त लगा कर ही निकलती हूँ
कि ‘जाते जाते मेरे प्रेम में
मत फ़िसलना!’

जी हाँ, थक चुकी हूँ मैं
काफ़ी बिगड़ चुका है
बदन का आकार भी
जवानी के घटते – घटते!
कदमों के लयात्मक ताल पर
अब कटि और नितम्ब
नाच नहीं पाते हैं!

मुरझा हुआ कांतिहीन चेहरा
पहले से मौजूद
थोड़ा सा टेढ़ापन दाँतों का
वो और भी बढ़कर,
ढीले पड़े होंठ उन पर
कुछ ऊपर या नीचे सरक कर
झूलने लगे हैं!
कभी सितारों के तरह झिलमिलाते नैन
अब तेल घटता हुआ बेआब दीपक!

काट कर गिराए गए पेड़ की तरह
थोड़ी देर आराम करने लेट जाती हूँ
जाँघों को
डालों के तरह
इधर-उधर फैला कर…
तुम जैसे कच्चे लड़कों को
अप्रिय लगे, ठीक वैसे
‘खर्र् खर्र्’ खर्राटे लेने लगती हूँ
मुंह के कोने से लार की धारा
रिसने लगती है।

फिरभी तुम लड़के
मेरे प्रेम में फ़िसलकर डूबते हो
और नेपेंतिस के तरह
दम घुटकर कत्ल होने के लिए
बेकाबू उतावले होते हो!

और…
चमड़ी की पर्तों को
सरकाने के प्रयास में
झूलते स्तनों के मांसल पर्वतों को
पार करने की उम्मीद में
कहीं उसपार
खोए हुए भंडार की खोज में
खो जाते हो
और वहीं बेहोश!

हम सब इस सड़क पर, इस दिशा में,
इस तरह, इस तादाद में
फ़ौज लिए
जा रहें हैं भी तो
उस तानाशाह के वध स्थान पर
इस बात को तो तुम भूल ही जाते हो!

और मैं हर बार वहाँ से
एक अकेली वापस लौटती हूँ।

और, फिर एक बार
हम फ़ौज लिए जाने के समय
मैं बार बार
शर्त लगाकर ही निकलती हूँ
कि ‘तुम और तुम जैसे लड़कों
मेरे प्रेम में मत फ़िसलना!’

©मीरा मेघमाला, कर्नाटक   

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