लेखक की कलम से

बादल जी आना तुम जब …

 

काली घटा के चादर पर चढ़कर आना बादल जी।

मैं देखूंगा नील गगन में मुझसे मिलना बादल जी।।

 

सोर मचाना तुम बादल जी बिजली भी कड़काना जी।

पर मैं अबोध छोटा सा बालक मुझे कभी न डराना जी।।

 

मैं निकलूंगा छाता लेकर मुझको न भींगाना जी।

मम्मा मेरी बहुत डाँटेगी मुझको न भींगाना बादल जी।।

 

जब मस्ती की बात चली तो केवल फूहार उड़ाना जी।

आधा भिंगा आधा सूखा मस्ती फुहार उड़ाना जी।।

 

झूम झूम कर पेड़ की डाली स्वागत करेंगे बादल जी।

तुम चाहे तो उसपर फिर मोटे मोटे बून्द गिराना बादल जी।।

 

खेत भींगाना तुम बादल जी मत भींगाना खलिहान जी।

किसानों की आशा बंधी है मत करना उनको परेशान जी।।

 

मत बरसाना बून्द तुम उसपर जिसके घर न छप्पर जी।

उनके बच्चे सहमे सहमे मस्ती न कर पाएंगे बादल जी ।।

 

तुम बरसो उस बंजर भूमि पर जिसको तुम्हारी जरूरत जी।

लहर लहर कर फसल झूमेंगे बून्द तुम्हरे पाकर जी।।

 

हम बच्चों के चंदा मामा को फिर भेजना बादल जी।

उनकी दूधिया छटा में बारिस बून्द दिखेंगे मोती जी।।

 

फिर जाना तुम अपने घर को मैं जाऊंगा अपने घर को जी।

तुम खाना हलवा पूरी मैं खाऊंगा मिठाई जी।।।

 

©कमलेश झा, फरीदाबाद

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