लेखक की कलम से

कब तुम मिलने आओगे …

 

मेरी आंखों में खुशियों के नीर बहुत बरसाओगे

कब तुम मिलने आओगे

 

प्रतिक्षण तेरा इंतज़ार है मन की मेरी गलियों को

उपवन हंसता खिलता रहता देख देख इन कलियों को

मधुर गीत गाते हैं भंवरे तेरे स्वागत में प्रियतम

यादों का कोलाहल होता रहता मन में ही हरदम

और प्रतिक्षा कितना कर लूं कितना तुम तड़पाओगे

कब तुम मिलने,,,,,,

सांसों पर एक नाम है तेरा आंखों में बस तू ही तू

कितनी प्रतिबिंबें बनती हैं केवल जिसमें तू ही तू

अविरल धारा प्रेम बहाता इसमें जब सुख मिलता है

तब जाकर के हृदय कमल ये पूरा पूरा खिलता है

मुझसे दूर कहो कैसे तुम अपना मन बहलाओगे

कब तुम मिलने,,,,,,

 

 

©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज                

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