लेखक की कलम से

चलते चलते …

एक बार हम डॉक्टर के पास पहुंचे, बोले- डॉक्टर साहब हमें कमजोरी है। हमारा खून चेक करो

 

डॉक्टर साहब बोले। तुम्हारे घर में मच्छर है क्या खून तो बिल्कुल नहीं है? हम इशारा समझ गए, बोले हां एक बड़ा फीमेल मच्छर है। वह भी मेरी बात समझ गए।

 

हम बोले अच्छा तो फिर बीपी चेक करो! डॉक्टर चड़के बोले, अरे जब फोन नहीं है तो ब्लड प्रेशर कहां से देखो

अब मशीन लगाई तो ऊपर नहीं जा रही थी सुई–

 

हम माजरा समझ गए। हमने बोला, हमारी बीवी बाहर बैठी है, उसे अंदर बुलाओ!

बीबी अंदर आए बोली, कुछ नहीं, लेकिन हमें खा जाने वाली नजरों से देखा

 

साफ कमाल हो गया बीपी एकदम ऊपर चढ़ गया

डॉक्टर साहब को माजरा समझ आ गया।

वे मुस्कुराए और बोले। अब तो तुम कभी हो इससे पहले क्या चाय बेचते थे क्या?

 

अब इतनी सी बात हमारी खोपड़ी में ना घुसे

हमारी अक्ल बंद श्रीमती जी ने ठहाका लगाया अब हमारा पारा आसमान छूने लगा। हम बोले।

 

हम हास्य रस के कवि है कोई

बंदर नहीं जो डुगडुगी बजाओ गे।

हमारा मान सम्मान है, इज्जत आबरू है।

आप सभी टाली पीट रहे हो, कुछ तो शर्म करो, लगता है सभी कुंवारे हो।  _

 

बहुत मजाक हो गया। अच्छा तो हम चलते हैं। जय राम जी की

 

© मीना हिंगोरानी, नई दिल्ली

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