लेखक की कलम से

धीर धरो हे मानव …

 

धीर धरो हे मानव फिर तैयार होगा मैदान।

एक एक कर नए खिलाड़ी जुड़ जाएंगे इस मैदान।।

 

 यह तो बस नियम भर खिलाड़ी बाहर होते हैं मैदान।

 इसी तरह से चलता रहता खेल बना रहता मैदान।।

 पारी दर पारी होगा स्पर्धा चलता रहेगा मैदान।

खेल खेल में जीत जाएगा जीवन के यह खेल महान।।

 

 जीत हार के इस स्पर्धा में बस खिलाड़ी ही तो थकता है।

मैदान तो तठस्थ होकर सबकुछ ही सहता है।।

मैदान खड़ा नित नव स्पर्धा के लिए केवल बदलते हैं खिलाड़ी मात्र।

दर्शक दीर्घा तो वही रहता है बदलते हैं बस दर्शक मात्र।।

 

 पक्ष विपक्ष के इस खेल में जब होता स्पर्धा खास ।

 जीत हार का मजा बढ़ता है जब होता स्पर्धा खास।।

 

याद कहाँ रहता दर्शक को खिलाड़ी ने लगाया कितना दम।

कभी मैदान से जाकर पूछो उसने देखा है खिलाड़ी का दम।।

 

 ऊर्जा बढ़ती हरियाली से जो मैदान के आगोश में है ।

माली के उस मेहनत का कब किसको फिकर है।।

 

 

याद रहता है बस केवल जीत का वह अंतिम गोल।

विजेता बनकर निखार जाता है खिलाड़ी का वह अंतिम गोल।।

 

 प्रतीक्षा अब अपनी बारी की जब होगा अपने हाथों में कंदुक।

 सटीक और सफल गोल कर जीत घूमना ही कंदुक।।

 

फिर करतल ध्वनि की शोर उठेंगे चारो ओर।

मैदान में होगी हरयाली और रंग उड़ेंगे चारो ओर।।।3

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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