लेखक की कलम से
अपने अपना न हुआ…
माँ बाप के अरमानों को,बच्चे यूँ कुचल जाते हैं।
जिसने उसे मुस्कान दी,उसे ताउम्र क्यूँ रुलाते हैं।।
माँ -बाप के सपनों को,क्यूँ बच्चे ही तोड़ देते हैं।
जिसने सहारा दिया,उसे बेसहारा छोड़ देते हैं।
जिनके लिए माँगे थे,जिंदगी भर हमने दुआ।
वह क्यों बेगाना हुए ?अपने,अपना न हुआ।।
माँ -बाप जिनके आँखों में,कई सपने सजाते हैं।
बड़े होकर वही बच्चे क्यूँ,लाल आँख दिखाते हैं।।
ऊँगली पकड़कर जिसने,दिखाया था हर रास्ता।
आज उसी से तूने,क्यों रख्खा नहीं कोई वास्ता।।
बच्चों को जिसने प्यार दिया,अपार व बेपनाह।
क्या सच में वही बन गया,माँ-बाप का गुनाह।।
याद रख एक न एक दिन,इसका इंसाफ होगा।
अकेले में सोचना,जब तू किसी का बाप होगा।।
रचनाकार-श्रवण कुमार साहू,”प्रखर”,शिक्षक/साहित्यकार,राजिम, जिला गरियाबंद,(छ. ग.)