लेखक की कलम से

कब आओगे वीर पवनसुत …

 

कब आओगे वीर पवनसुत लेकर हाथ मे धौलागिर पहाड़।।

संजीवनी की अब सक्त जरूरत लेकर आना समूल पहाड़।

 

फिर से लक्ष्मण सक्ति खाकर औंधा पडे हैं सागर तीर।

बिलख बिलख कर मर्यादापुरुषोत्तम अब खो रहे अपने धीर।।

 

संजीवनी की आश में टकटकी लगाए बंदर वीर।

कालनेमि का वध कर तुम जल्दी आओ बजरंग वीर।।

 

पावँ उखाड़ रहे अंगद के अब उनको भी दो नैतिक ज्ञान।

रावण और उस जैसो का आतंक मचा पूरा जहाँ।।

 

फिर एक बार तुम दहन कर लंका उसको करा दो अपना भान।

मेघनाद के कर्कश गर्जन को अपने गर्जन का करा दो भान।।

 

मुह फैला अब सुरसा का जो निगल रहा है सुख और चैन ।

सत योजन का बदन दिखा अब सुरसा को अब दे दो चैन ।।

 

राम राज्य की हमे जरूरत बहुत झेला है अत्याचार।

अपने प्रभु से करो निवेदन फिर से स्थापित हो राम राज।।

 

जनता अब त्राहि त्राहि है झेलकर भरस्टाचार और महंगाई की मार ।

अब संजीवनी की शक्त जरूरत जिसको लेकर ही आना आप।।

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद      

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