लेखक की कलम से
मदमस्त फागुन मास …
एक सूत्र में
बंध सकूं
या बांधूं
सब मित्र
ऊपरवाले ने
बनाये
कैसे कैसे चित्र
जो भी
जैसा भी रहे
सब ही लगे
पवित्र
करूं दुआ
दिन रात मैं
सबको
अपना
कह सकूं
बदले न
मेरा चरित्र!
©लता प्रासर, पटना, बिहार