लेखक की कलम से

मुझे सपने नहीं आते …

मुझे सपने नहीं आते शायद

वो भी जानते होंगे

मुझे हकीकत पसंद है

लिखते वक्त भी वही लिखती हूं

जिसका अनुभव हो मुझे

 

सपने सच नहीं होते अच्छे से मानती हूं

और यही बात सपने भी जानते होंगे

 

नींद में भी जागती सी रहती हूं

खुली आंखों से किसी दृश्य की कल्पना करती हूं

यह सोचकर की भविष्य के सुखद सपने देखने चाहिए

सुना है कभी किसी वह दिन सच हो जाते हैं

 

सपने नींद में बंद आंखों में आते हैं

मगर मैं तो नींद में भी जागती सी रहती हूं

खुली आंखों से सोती हूं

मेरा लोगों से भागते रहना नींद में भी जारी रहता है

 

मैं सपने लेना चाहती हूं

 

मुझे तैरना नहीं आता…

गहरे समुद्र में बेतहाशा हाथ पैर मारते हुए,

जीवन के  लिए संघर्ष करते

देखना चाहती हूँ

 

यही तो जीवन भर करती आई हूं

यह सपना भी नहीं आता

 

अब तक तो हर तरफ स्वार्थ ही  स्वार्थ देखा

कोई आंसू पोंछने के लिए आंसू नहीं पोंछता

ढांढस बंधाने के लिए कोई सीने से नहीं लगाता

 

देह केवल छूने के लिए इस्तेमाल होती है

 

मैं सपना लेना चाहती हूं काली कमली वाले का

जिस की बांसुरी की धुन सुन मैं बावरी हो

हा श्याम हा श्याम पुकारती  पुकारती

आंसुओं की धारा संग बहती बहती मीरा हो जाऊं

 

मैं सपना लेना चाहती हूँ

एक ऐसी शक्ति हो जाने का

कि हर गरीब, लाचार, दुखी से मिलकर

उसे छूते ही सुखी और सम्पन्न कर दूँ

बिन माँ के बच्चों के होठों पर मुस्कान

सर पर हाथ फेर

साहस और समझ दे दूँ

 

अपनी बाहों के फैलाव को इतना

बढ़ा सकूं दुनिया का हर बेजुबान, नीरीह

मेरे आगोश में आकर सुकून पा सके

 

आखिर ऐसे सपने क्यूँ नहीं आते

कि आ जाएं तो इनके सच होने

की सुखद अनुभूति ले सकूं

 

©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा                                                                 

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