संकट से घिरी अन्नपूर्णा ….
पृथ्वी दिवस पर विशेष
हे नारायण फिर कब आओगे,
धरती का भार उतारने को?
संत जनों को मोक्ष देने और,
पापियों को जान से मारने को||
सत्य धर्म फिर नाश हो रहा,
अधर्म का बज रहा है डंका|
गली-गली में रावण खड़े है,
अब घर-घर हो गया लंका|
भक्ति किसी कोने पे रो रही,
अब तो आओ उबारने को–
मैं अपनी दुखड़ा किसे सुनाऊँ,
गौ रूप भी धर सकती नहीं|
मेरे ही आश्रित है जग सारे,
मैं चाहकर भी मर सकती नहीं||
कोई तो युक्ति करो गिरधारी,
अब मेरी हिम्मत बढ़ाने को—
गिरी पर्वत, वृक्ष अरु सरिता,
लगता कभी मुझे भार नहीं |
मानव अपनी मानवता भूल रहे,
मेरे प्रति कोई आभार नहीं||
भटके हुए इंसान को नटवर,
फिर से सत्य मार्ग बताने को–
ऋषि और कृषि की धरती,
अब देखो तो बंजर हो रहे|
जीवनदायिनी पानी और वाणी,
मानों मानवता के खंजर हो रहे||
आर्यावर्त की संस्कार संस्कृति,
युवा पीढ़ी में जगाने को—-
पृथ्वी ही यदि सुरक्षित न हो,
तो दुनियाँ को कहाँ बसाओगे?
बोलो क्या अन्न उगाने हेतु,
मंगल और चाँद पर जाओगे ?
संकट से घिरी इस अन्नपूर्णा की,
हे! माधव,मान सम्मान बचाने को—
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)