लेखक की कलम से

खुशियों का गाँव ….

हम खुशियों का गाँव बनाते हैं

हम बच्चों के लिए नाव बनाते हैं

 

हम पेड़ हो गए भले बूढ़े ही सही

पर आज भी घनी छाँव बनाते हैं

 

हम उस्तादों को भी अपना हुनर पता है

हम जूते नहीं, भविष्य का पाँव बनाते हैं

 

रात को पढ़ सको तुम दिन की तरह

हम जुगनुओं की किताब बनाते हैं

 

दुनिया रह सके इंसानियत से रौशन

हम बच्चियों को माहताब बनाते हैं

 

हक़ीक़त से भी हसीन एक जहान हो

उसी वास्ते हम रूमानी ख्वाब बनाते हैं ….

 

 

 

  ©सलिल सरोज, कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, नई दिल्ली    

 

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