लेखक की कलम से

औल बस चल पड़ी …

और बस चल पड़ी और उसने पीछे मुड़कर देखा अम्मा का आफिस छुटते जा रहा था उसे लगा उसकी सारी समस्या अब खत्म हो जायेगी बस पर माँ के हाथ पत्र दिया ओर उसके कंधे पर सो गयी ।

पत्र पढ़ते ही उसकी अम्मा रो पड़ी

मेरी प्यारी अम्मा,

आज तुम रिटार्यड़ हो के घर आ गयी हो

या यू कहूँ मैं आज बीस साल की उम्र में बिन ब्याही माँ के फर्ज से मुक्त हुई,

आज मैं भी सही अर्थों में एक स्वच्छंद लड़की बन के जी सकूंगी

जब चाहूँ कहीं आ जा सकुगीं

तुम्हारे गोद में सर रख सो सकुंगी और जब चाहूं गले लग के रो सकुंगी

मैं जानती हूं मेरी ये बातें तुम्हें अजीब लग रहीं होंगी

मगर अम्मा जब पापा और आप ने निर्णय लिया की आप ड़वरा जाके जाँब करोगे

तब आप दोनों ने मेरा जरा भी नहीं सोचा

हालांकि आप सोचते थे हम तीनों भाई बहनों के उज्जवल भविष्य के लिए हमलोगों का बिलासपुर रहना ही ठीक है। मगर आप दोनों ने अपनी सारी जिम्मेदारी मुझे डाल दी। पापा सुबह से आफिस चले जाते, हम तीनों को ग्यारह बजे तक निकलना होता था .

सब का टिफीन वाँटर बैग संभालते मैं थक सी जाती थी

और शनिवार को आप आती सुबह से शाम हो जाता आपका घर समेटते साथ में मुझे ही साथ लगाये रहती और यही बताती तुम बड़ी हो इनकी सारी जिम्मेदारी तुम्हारी है

सोम शिकायत भी करता तो तुम आँख मूंद के उसकी बात मान लेती

सोनम की भी की वो छोटी बहन है

कभी कभी तो पापा ही चले जाते आपके पास तब तो उनके कपडे़ धोने की जिम्मेदारी भी मेरी हो जाती

मैं समझौते पर समझौते करती गयी अम्मा मैं खेलने भी नहीं जाती थी

स्कूल के किसी कार्यक्रम में भी भाग नहीं लेने दिया आप ने

सोम ने एक बार ही कहा तो घडी़ भी ले दी और सोनम के जब स्कूल की ओर से जब पिकनिक गये तो आपने जाने दिया

मैं एक ही साल तो बडी़ थी माँ सोनम से

मगर पापा हर काम मुझ पर छोड़ते जा रहे थे

मेरी परिक्षा के दिन भी मैं सब के लिए खाना बना के जाती

पूजा करने शाम की आरती बाती सब काम मुझसे ही कराया जाता

आप लोगों ने कभी भी नहीं सोचा न मेरे बारे में मेरी पसंद ना पसंद

से आप चारों को कोई मतलब नहीं था। ये सोच कभी कभी बहुत रोना आता है अम्मा कभी- कभी लगता मैं गुलाम हूँ इन दोनों की

सोम कभी कभी मेरा साथ देता लेकिन पता चला उसे पैसे चाहिए होते हैं मुझसे इसलिए ही वह यूं करता है

जब मैं कपडे लेने छत पर जाती तो रवि से थोड़ा डिस्कस कर लेती पढा़ई का तो

पापा ने ये भी पसंद नहीं किया

और दिन भर घर का काम समेंटते सहेली तो मेरी कोई बन नहीं पायी

आप खुश थी जैसे- जैसे मैं बडी़ होती जा रही थी आपकी घर की जिम्मेदारी कम होते जा रही थी

और आपका और पापा का प्रमोशन होते जा रहा था

तो साथ- साथ वर्क लोड़ बढ़ते जा रहा था आप चारों की अपनी-अपनी एक दू

दुनियाँ थी जहाँ आप सब खुश थे सोम, सोनम को तो मेरे से बात करना भी पसंद नहीं हो उनको लगता मैं उनके उपर शासन कर रही हूँ

हाँ सारा काम समय पर चाहीए होता है उनको

धीरे धीरे नया घर बना उसके लिए सारा समय पापा ने वहाँँ देना शुरु किया तब सोम और सोनम को थोडी सी जिम्मेदारी आपने दी पर जब उनका मन होता वो करते जब नहीं होता नहीं करते और.

कभी मैं ऐसा करती तो घंटों एक मुजरिम की तरह कटघरे में आप लोग खडे़ करते

एक दिन आपने कहा सारे काम तो मशीन से हो रहे मेरी सुबिधा के लिए सब तो ले दिया है आपने बांशिंग मशीन, मिक्सी, बड़ा फ्रीज,  चार बर्नर वाला गैस, सब

अम्मा बताओ न इनमें से कौन सी चीज बिना हाथ लगाये चलती है

वैसे भी हर चीज में तो रोक लगाई आपने की बडी़ बहन ऐसा करेगी तो छोटे कैसे करेगें

मेरे हिस्सा का सारा वक्त, सारी, खुशी, आपने बाँट दी

अम्मा अब आप आ गयी हो वापस तो खुद देखोगी

और सुनो अभी कुछ साल मेरी शादी की बात तो करना मत तुम

मुझे वो सब वसुल करना है तुमसे जो मैं तरसते रही इतने सालों से

तेल लगवाना है सर पे, दस बजे तक सोना है, कालेज बंक करके पिक्चर जाना है अपने लिए ऊपर का कमरा लेना है अब मैं आजादी से रहुगीं हर वो काम जिसके लिए तरसी हूँ कंरुगी अम्मा.

मुझे अपनी जिंदगी जी लेने दो पता नहीं फिर कैसा ससुराल मिले

तुम्हारी बड़ी बेटी जो अब सबसे छोटी बेटी बनेगी …

 

©डा. ऋचा यादव, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                    

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