लेखक की कलम से
मोहब्बत का हिसाब …
कोई हिसाब न रखना हुजूर ,
कीमत से, प्यार सस्ता हो जाता है!
जिन्दगी तुम्हें देदी ,
अब बचा क्या छुपाने के लिये !
कसमों में यकीन मत रखना साहिब ,
अदालतों में “गीता” भी,
झूठे बयानों से खरीद ली जाती है !
बडे सिद्दत से तुम्हें चाहा है ,
बडे अदब से तुम्हें पाने की चाहा रखी है!
मोहब्बत में हम” दगा” नहीं करते ?
बस छोड़ देते है ,
धोखे की खबर सुनकर ,
मुड़ते नहीं कभी ,उस रास्ते पर !
जहां के रास्ते मुड़कर फिर वहीं खडा़ करते है
तलाश कर चलते हैं ,गुमनामी के अंधेरों को ,
रात में भी रौशनी के लिये “चांद “को
साथ लेकर चलते है
अकेले कहां है “हम ”
सुबह को “सूरज” के साथ घूमने निकलते है ।
©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी