लेखक की कलम से

अकथ कहानी प्रेम की, कछु कही न जाय …

 (भाग 1)

जी हां दोस्तों ये ऐसी कहानी है जिस पर लेखनी चलनी जरूरी है। आखिर हमारे जीवन के उन खास पलों का हिस्सा है जो अद्भुत है और अकल्पनीय है। जिसने सभी के जीवन को प्रभावित किया और अभी भी कर रहा है। जी हां बात कर रही हूं कोविड 19 की जिसने मुझे चेक इन कर दिया और मुआ खूद बांहें फैलाए घूम रहा है। मार्च का महीना होली की मस्ती का खुमार उतरा भी नहीं था कि लॉकडाउन, क्वारैंटाइन, फिजिकल डिस्टेंसिंग, स्टे होम जैसे बड़े बड़े शब्दों से दो चार होना पड़ा।

घर बैठे गूगल पर सर्च कर इन शब्दों के अर्थ जानने लगी। और बीच बीच में ताली बजाओ, थाली बजाओ, दिये जलाओ आदि महत्वपूर्ण टास्क भी आते रहे। लगा ..बीमारी सचमुच में बहुत बड़ी है। घर बैठने मे ही भलाई है। बरसों बाद जिंदगी जैसे थम सी गई। जो जहां है वहीं रुक गया। मैं और पतिदेव यहां और बच्चे वहां। अघोषित छुट्टी की खुशी बहुत थी। घर में रहना तब और सुखद लगता है जब आप नौकरीपेशा हो। इसीलिये शायद कुछ दिनों का आराम..कुछ दिनों का ब्रेक.. जीवन को रिचार्ज कर देता है।

मुझे तो बिना मांगे यह वरदान मिल गया था। घर का काम जिसमें खाना बनाना ..झाडू पोंछा, बर्तन मांजना भी शामिल था। सब चलता रहा और लिखना पढना और रचनात्मकता, योग, कुछ नया सीखना फिर बनाना ..ऐसे ही अनुभव में मेरा ‘छंदशाला ‘ का निर्माण रहा जहां घर बैठकर कविजगत के साथ छंदों को सीखना है। जिस चीज से मैं बचपन से भागा करती थी दोहा, रोला,चौपाई .उसे ही सीखने की इच्छा ?? मेरे लिए भी आश्चर्यचकित करने वाला था पर कहते हैं न सपाट राहों पर चले तो क्या चले ?? दो चार दिन मे ही दोहा लेखन में मात्रा गिनना, लघु गुरु ने आंख के आगे अंधेरा ला दिया पर क्या करुं ..अंदर से आवाज आई और कूदो ..तुम्हें ही तो सीखना था ..खूद का ही निर्णय था तो कुछ करा भी नहीं जा सकता ..और पीठ दिखाना ..बुरी बात है ..ये पढा है ..खैर ये सब चलता रहा ..घर मे भी हम चैन से कहां बैठने वाले थे ..सुपर वुमन बनकर यूट्यूब मे रैसिपी देखकर नई डिसेज बनने लगीं ..पतिदेव भी खुश ..हम भी खुश ..इनोवेशन की तो जैसे घर मे बाढ आ गई और स्वादकलिका भी चरम पर थीं। केक, बिस्किट, नमकीन, मिठाइयां सब घर मे ही बनने लगीं।

पतिदेव भी कहां पीछे रहते ..पुदीने की चाय ..इलायची वाली कॉफी ..हर्बल टी ..विभिन्न प्रकारों के काढा, इम्यूनिटी बढाने की चीजें घर मे ही बनने लगी .. पतिदेव की इस कला से तो मै अंजान थी ..लगा इंजीनियरिंग करके पतिदेव ने गलती कर दी उन्हें तो मास्टर शेफ होना था .. बस..क्या कहें साहब बस इक्कीस दिन घर मे ही रहना है इस कवायद में हंसी खुशी जिंदगी चल रही थी कि लॉकडाउन के फिर बढने की खबर ने चिंताएं बढा दीं ..फिर भी देश के लिए हम फिर तैयार हो गए ..इस बीच काम वाली बाई आई और पगार लेकर हाथ हिलाते हुए चली गई ..उसका जाना और हाथ हिलाना ऐसे प्रतीत हुआ जैसे कह रही हो ..’ मैं चली मैं चली ..मुझे रोके न कोई ..मै चली चली। ” चलो उसको भी खुश रहने का अधिकार है मैने मन ही मन बुदबुदाया ..और फिर काम में लग गई …

 क्रमशः ….

 

 ©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                                                                     

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