लेखक की कलम से

सड़क….

लघुकथा

लाओ जल्दी से मुझे वो गहने और पैसे दे दो, नई दुनिया बसाना है अब हमें स्वीट हार्ट….

राहुल के स्वर पर नीति ने गहनों की पोटली को कुर्ते की जेब में हाथ डालकर कस के पकड़ लिया …नहीं राहुल, मम्मी ने गहने जाने कहां रखे हैं।

ओह कैश तो लाई हो ना, नौकरी ढूंढ़ते तक बहुत पैसों की ज़रूरत होगी हमें नीति …सो सॉरी राहुल, अलमारी की चाबी मिली ही नहीं ……नीति ने सिर झुकाए ही जवाब दिया …

तो क्या करने आईं हो, ऐसे ही भाग चलूं, तुम्हें कुछ अक्ल है भी या नहीं, नालायक…..

तुम्हें ले आना था अपनी मॉम के गहने, अपने पापा के पैसे.. तुमने कहा था ना कि अब से हर सुख हर सुख हम अधा आधा बांटेंगे।

सॉरी नीति मैं कुछ ज़्यादा बोल गया, ऐसा करो कल तुम गहने और कैश लेकर आना इसी जगह, आज घर लौट जाओ कोई बहाना कर देना ….

हां जा रही हूं पर मेरा इंतजार मत करना कभी भी, नहीं आऊंगी मैं … मैं सब लाई हूं तुम्हें चेक कर रही थी। तुममें मैंने जीवन की मंज़िल देखी थी, तुम तो सड़क निकले, मुझे घर से बाहर निकालने वाले….गुडबाय राहुल….

©वर्षा रावल, रायपुर, छत्तीसगढ़

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