लेखक की कलम से

ये कईसन बिहाव…

 

बिन बाजा के बराती,

बिन पहुना के घराती।

नई बाजे बाजा, न बजे पोंगा।

समधी के घलक छोटे होगे चोंगा।।

बिहाव के जम्मो नेंग जोंग,

एक दिन म होवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे ?

नई, काकरो हियाव होवत हे।।

 

नेवता के चिट्ठी न पत्री,

न मांदी मेला न पतरी।

रिसागे बड़खा साढू,

कलेवा म नई हे लाडू।।

सगा मन के हाथ पांव ल,

सेनिटाइजर म धोवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे?

नई काकरो हियाव होवत हे।।

 

फेसनहीन टुरी मन के अब,

नई बाजत हे पैजन, सांटी।

कोरलगहा जावत हे,

मंगरोहन, अउ चुरमाटी।

घर के जेवन पानी ह,

अब बरबाद नई होवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे?

नई काकरो हियाव होवत हे।।

 

ठिकाना नई परत हे,

बराती मन के परघावन।

कलेचुप निपटत हे,

देख बेटी के टिकावन ।।

बेटी के बिदा म दाई,

गोहार पार के नई रोवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे?

नई काकरो हियाव होवत हे।।

 

मास्क लगा के ढेरहिन ह,

तेल हरदी ल चढ़ात हे।

दूल्हा -दुल्हन ल कोनो,

झूलना नई झुलात हे।

मोटर गाड़ी के अब नई,

कोनो पूछ परख होवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे?

नई काकरो हियाव होवत हे।

 

नई तो बाजत हे मोहरी,

नई बाजत हे कोनो दफड़ा।

लुगरा -पाटा बांटे के,

अब नई हे कोनो लफड़ा।

ये कोरोना के बिहाव म,

परोसी ह सोसन भर सोवत हे।

ये कईसन बिहाव होवत हे?

नई काकरो हियाव होवत है।

दान दहेज, लेन देन के,

अब नई होवत हे कोनो गोठ।

दुधभत्ता अउ मड़वा छुवाय के,

अब नई माँगय कोनो नोट।

सुग्घर मया, परेम से,

सब कारज ह होवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे ।

नई काकरो हियाव होवत हे।।

 

मटमटहा भांटो ह अब,

पी के देवत नई हे गारी।

हरहिंचा हावय देखव,

वोकर घर के सुवारी।।

घराती बराती म कान्हचो,

अब मार पीट नई होवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे ?

नई काकरो हियाव होवत हे।।

 

अतेक सुग्घर बिहाव देख के,

मन म खुसी छागे।

अईसन लागत है जईसन,

राम -राज ह आगे।।

आदर्श बिहाव के सपना ह

सहिच्च म आज पूरा होवत हे।

 

ये कईसन बिहाव होवत हे ?

नई काकरो हियाव होवत हे।।

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

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