लेखक की कलम से

बच्चों को समझो ….

आजकल हर माँ बाप की शिकायत रहती है कि उनका बच्चा उग्र, ज़िद्दी ओर असहनशीलता का शिकार हो रहे हैं।

पर मैं इसे डिप्रेशन का शिकार कहूँगी.!

वो गल्ली बाय ओर गलियों में कंचे खेलती छोटी-छोटी छोरियां कहीं दिखती ही नहीं वो गिल्ली डंडा ओर पिठ्ठू के पत्थर कहीं खो गये।

एकांकीपन से ग्रस्त बच्चे मानसिक तौर पर विद्रोही हो जाते है, केवल एक बच्चे की सोच रखने वालें दंपत्ति उस एक बच्चे के बारे में विचार नहीं करते, आजकल पति पत्नी दोनों जाब करते हैं, माँ-बाप कामकाजी होने की वजह से बच्चें को उतना समय नहीं दे पाते अगर दूसरा बच्चा होता तो साथ-साथ पलते-खेलते लड़ते-झगड़ते बच्चे का समय व्यतीत हो जाता तो नि:संदेह बच्चे को एकलता का सामना नहीं करना पड़ता ओर एकलता जब बड़ों को डिप्रेशन का शिकार बना लेती है तो ये तो मासूम दिमाग है।

घर वालों का ध्यान अपने प्रति खिंचने के लिए बच्चे खाने में नखरे करते है, जानबूझकर कुछ तोड़ फोड़ देते है, बिना बात के रूठते है, रोते है माँ बाप को लगता है बच्चा ज़िद्दी है पर खुद अपनी गतिविधियों की तरफ़ ध्यान नहीं देते थोड़े से निरिक्षण के बाद पता चल जाएगा की बच्चा एसा बर्ताव क्यूँ कर रहा है।

वैसे आजकल के बच्चों का उग्र ओर असहनशील होने के पीछे ओर भी बहुत सारे फ़ेक्टर्स होते है, पहला तो आजकल संयुक्त परिवार टूट रहे है, उपर से माँ बाप दोनों ही कामकाजी होते है तो बच्चें नौकरों के हाथों या डे केयर में पलते है, पारिवारिक प्यार ओर परवरिश का अभाव बच्चों की ग्रोथ को धीमा कर देता है, या काम की वजह से किसी दूसरे शहर में रहना पड़ता है तब बच्चें दादा-दादी के प्यार, ममता, परवरिश से वंचित रहते है दादा-दादी बच्चों के संग हंसते-खेलते, खिलाते-पिलाते रहते है तो बच्चें को समय पर खाना भी मिलता है साथ में जरूरी पोषक तत्व भी।

पर अलग रह रहे परिवार के बच्चों में खान पान में भी फ़र्क पड़ता है माँ जाब करती है तो ज़ाहिर है समय का अभाव होगा जल्दी-जल्दी में जो आया बना दिया ओर खिला दिया, या बाज़ारु फास्ट फूड के भरोसे बच्चें अनाप-सनाप कुछ भी खा लेते है ओर नतीजा न्यूट्रिशन की कमी की वजह से बच्चे थकान महसूस करते है तो चिड़चिडे हो जाते है।

साथ में आज की स्पर्धात्मक लाइफ़ के चलते शैक्षणिक व्यवस्था भी कुछ हद तक ज़िम्मेदार है हर माँ बाप चाहते है बच्चे के मार्क्स 90% से उपर तो आने ही चाहिए, अरे बच्चा है उसके छोटे से दिमाग में समुन्दर भरने की कोशिश ही उसे डिप्रेशन का शिकार बना देती है, पहले के ज़माने में 6 साल तक बच्चे बिंदास खेलते थे, ना स्कूल की चिंता ना पढ़ाई की आजकल ढ़ाई साल के होते ही नर्सरी में डाल देते है ये सब बातें बच्चों से बचपन छीन लेती है।

मोबाइल भी एक कारण है ज़्यादा तर बच्चे एडिक्ट हो रहे है मोबाइल के, माँ-बाप तो होते ही है, बाहर के कामों से थके हारे माँ बाप घर आकर जितना भी समय मिलता है मोबाइल पर काट देते है, बच्चे गेम खेलने में, तब घर का वातावरण संवाद विहीन ओर यांत्रिक हो जाता है, ओर भी एसी बहुत सारी चीज़ें है जिससे आजकल के बच्चे हाइपर हो जाते है।

अगर आने वाली पीढ़ी को मानसिक ओर शारिरीक तौर पर मजबूत बनाना है तो इन सारी चीज़ो पर गौरतलब होते आजकल के माँ-बाप को अपना रवैया ओर रहन-सहन बदलना चाहिये तभी एक तंदुरुस्त समाज की नींव रख पाएँगे।

 

    ©भावना जे. ठाकर    

Back to top button