लेखक की कलम से

रक्त वर्ण प्रेम का रंग …

ओ रंगरेजवा रंग दे मेरी चुनरिया

बिन रंगों के बीत न जाये

ये मेरी उमरिया।

 

श्वेत वर्ण अलौकिक लगता, पावनता है झलकती

माँ शारदे भी हर्षित होकर, श्वेत वसन ही धरती

शुभ्र ज्योत्स्ना से ही छलके, सबकी सुख गागरिया।।

 

रक्त वर्ण प्रेम का रंग है, सबको ही हर्षाये

इसके बिना अपनी सृष्टि, इक पल चल नहीं पाये

प्रेम रंग से ही राधे को, मिल जाये साँवरिया।

 

पीत वर्ण मस्तक का चंदन, शीतलता है देता

चित्त शान्त हो जाता अरु क्षोभ नहीं है रहता

पीली आभा से ही ज्योतित, संतन की चदरिया।

 

श्याम वर्ण की महिमा से तो, अवगत है जग सारा

श्याम वर्ण यदि होता न, श्वेत रह जाये बेचारा

ये दोनों अंग जीवन के, सुख दुख का नजरिया।

 

इन्द्रधनुष के रंग हैं जितने, लगते हैं प्यारे

इन रंगों से ही सजते, सुंदर घर और द्वारे

रंगों के बिन लगती नीरस, जीवन की डगरिया ।।

 

ओ रंगरेजवा रंग दे मेरी चुनरिया

रंगों के बिन बीत न जाये

ये मेरी उमरिया।।

 

©अलका शर्मा                              

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