लेखक की कलम से

मयख़ाना ….

 

तुम मयखाने की क्या बात करते हो,

जब जादू है इन आखों के पेमाँने में।

 

एक के बाद  एक पेग में वो नशा  कहाँ है,

जो जादू है  मदहोश बातो के जामो में।

 

लडखडाते हो पीके जाम तुम इस तरह,

देखा होता मुझे एक बार नजारों में।

 

अगर दम है बोतल में गम भुलाने की,

मैं बसने लायक हूँ खयालौ के इशारों में।

 

नफरतो को मिटा दे अपने दिल से तू,

वफ़ा मिलेगी तुझे प्यार की बाहों में।

 

 

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

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