लेखक की कलम से

मन की उड़ान…

 

दोस्तों की यादें कभी बूढ़ा नहीं होने देती।

मन की उड़ान ऐसी है,

जो एक पल में यादों का समा बाँध लेती है।

सोचते – सोचते चंद लम्हों में बचपन की यात्रा करवा देती है।

अरे! इस उड़ान में ब्रह्माण्ड की दूरी भी

कुछ पलों में नाप ली,

खाने लगे जब भावनाओं के हिचकोले,

भव सागर की लहरों में,

मन ने कठपुतली बना डाला

उदासी से आँखों की नमी के मंजरी तक,

खुशी की महफिल में

तन्हाई के समन्दर तक,

मेरे अच्छे – बुरे कर्म की लेखनी में साक्षी बनकर मन मेरे साथ ही रहता है।

मन मुझे वैकुण्ठ का ध्यान लगवाता है,

न जाने कुछ उलझनों में मुझको भरमाता है।

मन की सोच बेअंत है,

मन की चली अपार तो जिंदगी की नाव,

भवसागर में हिचकोले खाएगी।

मन में सत्य कर्म सँभालने से जिंदगी   ईश्वर की कृपा से भर जाएगी।।

खुशी के लम्हे मन में प्यारे अहसासों को जन्म देते हैं।

पल में मन की लहरों मे पनपते सपने आँखों में बसे होते है।

मन ही डराता, मन ही समझाता, मन ही रुलाता,

मन ही स्वप्न लोक की सैर करवाता।

मन की व्यथा निराली है।

मन में अच्छे और सच्चे दोस्तों की यादों को रखने से,

मन में शान्ति का अनुभव होता है

मन में शुद्ध सच्चाई हो

ईश्वर का साक्षात्कार भी होता है।

मन की रफ्तार कभी न रूकने वाली है,

मन की उड़ान ऐसी हो, सफलता के कदमों की ओर बढने वाली,

मीठी यादों वाली,

बिना स्वार्थ  के अर्पण वाली,

मनभावन, मनमोहक…

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा

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