प्रतीक्षा …
प्रतीक्षा कभी,
व्यर्थ नहीं जाती।
लगन सच्ची हो तो,
राहें मंजिलों तक,
खुद -ब -खुद ले जाती ।
प्रतीक्षा कभी,
व्यर्थ नहीं जाती।
बीज बनता है,
धरती की गोद में फूटता है।
एक डाली से,
विशाल पेड़ जब बनता है।
नन्ही -नन्ही कोपलें
फूल बनने तक,
कितनी प्रतीक्षा है करती।
फल भी कच्चे से,
पकने तक,
कुदरत की प्रतीक्षा है करता।
जिंदगी हर,
शुरुआत से,
मंजिलों तक पहुंचने की,
प्रतीक्षा ही तो करती है।
प्रतीक्षा कभी,
व्यर्थ नहीं जाती है।
जवाब मिलते हैं,
अनगिनत प्रश्नों पे,
सवाल मिलते हैं।
कभी खामोशी से,
कभी शब्दों में,
जो हालचाल मिलते हैं।
अपने दिल पर,
हाथ रख कर,
धड़कनों से जवाब लो ।।
भीतर के ईश्वर को,
आवाज दो,
उसी से समस्त प्रश्नों का,
जवाब लो।।
प्रतीक्षा कभी,
व्यर्थ नहीं जाती।
लगन सच्ची हो तो,
मंजिलें जिस राह से,
होकर
मिलती हैं।
कभी-कभी मंजिलें,
उसी राह पर चलकर है आती।
©प्रीति शर्मा, सोलन हिमाचल प्रदेश