लेखक की कलम से

लकीर ….

 (लघुकथा)

 

मेरे बेटे का दाख़िला कनाडा के कॉलेज में हुआ। जब मैंने अपनी बहन को बताया तो उसके चेहरे का रंग उड़ता मैंने खुद देखा। उसकी बेटी यूपीएसई की तैयारी कर रही थी। मेरे बेटे के विदेश जाने के बाद तो उसने यहाँ तक कहा -“उसे वापस बुला लो। वह भी यहाँ पेपर दे। कितना मुश्किल है यह पढ़ाई करना।”

मैं चुप रही। वह मेरे घर आई हुई थी। मैं अपने घर आए किसी मेहमान की बेज़्ज़ती नहीं करती।

पूनुचेरी में एक माँ ने अपने बेटे के सहपाठी को इस लिए ज़हर दे दिया क्योंकि वह कक्षा में पहले स्थान पर आया था। जबकि उसका बेटा दूसरे स्थान पर। यह जलन की इंतिहा है या मानवता का अंत। समझ नहीं पा रही हूँ। मुझे बचपन की एक कहानी याद आ रही है।

मास्टर जी ने ब्लैक बोर्ड पर एक लकीर खींच कर बच्चों को कहा – “इसे बिना छुए छोटा करके दिखाओ। ”

सभी बच्चे सोच में पड़ गए। तब मास्टर जी ने उस लकीर के साथ एक बड़ी लकीर खींच दी। पहली लकीर खुद छोटी हो गई। उन्होंने समझाया -“कोई आपसे आगे निकाल जाए तो उससे जलन करने की अपेक्षा, मेहनत से आगे निकाल जाओ। लकीर खुद छोटी हो जाएगी। ”

 

 

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़                                                             

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