लेखक की कलम से

पापा मेरे …

 

“पापा मेरे पास हैं।”

आज़ मुझे कोई काम नहीं है।

बस एक ही काम कर दिया

पापा से पूछ बैठा अनायास

” हो कुछ काम तो बताओ”

तब से मुस्कुरा रहे हैं।

खुद ही सब काम

किए जा रहे हैं।

उनका बेटा संस्कारी है।

उसे उनकी परवाह है।

बस इसी बात पर,

फूले नहीं समा रहे हैं।

आज़ के दिन, त्योहारों सा अहसास है।

मेरे पिता मेरे पास हैं। मेरे लिए खास हैं।।

 

©अर्चना त्यागी, जोधपुर                                                  

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