लेखक की कलम से
बंद दरवाजो़ं से …
कोख से बाहर आते ही था रिश्तों का जमावड़ा
सब तरफ था लाड़ प्यार दुलार का बिछौना
मैं हैरान था वाह !
कितनी दिर्लफ्रेंब है यह रिश्तों की दुनिया
तभी एक अजनबी आवाज ने चौंकाया मुझे??
दोस्त यहां धोखे और फरेब का सट्टा बाजार
मत जाना बाहर
नहीं है इतनी खूबसूरत बाहर
लगती जितनी बंद दरवाजों के अंदर …
© मीरा हिंगोरानी, नई दिल्ली