लड़कियों की स्वतंत्रता, खोती भारतीय सभ्यता …
आज जब हमलोग “बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ” का अनुसरण कर रहे हैं। बेटियों को बेटों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलना सिखा रहे हैं। आज बेटियों को हर फील्ड में जाने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं और बेटियाँ भी देश का गौरव बढ़ा रहीं हैं। आज बेटियाँ अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
मगर ऐसा नहीं लगता कि, वो आगे बढ़ने के चक्कर में अपनी संस्कृति को भूलती जा रही है। कपड़े पहनने का ढंग, बोलने का तरीक़ा, जीवन जीने का अंदाज बदलता जा रहा है। आज वो सबकुछ अपनी मर्जी से करना चाहती है। किसी की टोका- टाकी उन्हें पसन्द नहीं।
आज वो खुल के क्लब, बार और रात्रि पार्टी भी करती है। अब वो भी शराब पीना, सिग्रेट पीना अपनी आधुनिकता की पहचान मानती है। क्या ये सही है। पुरूषों के साथ देर रात तक घूमना-फिरना किसी गलत हादसे को बढ़ावा नहीं देता….? आज वो अपनी इच्छा से पुरूषों के साथ संबंध बनातीं है, साथ में रह्ती है और जब मन करता है तो अलग हो जाती है। ऐसे संबंधों में उनकी सहमति होती है।
आज भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में, जहां हम लोग एकल परिवार में विश्वास रखते हैं। वहां हमलोग अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं।
क्या हम लोग आने वाले समय में या भविष्य में उन नारियों को देख पायेंगे? जो हिन्दू संस्कृति की पहचान है???
हमलोग सभी जानते हैं कि नारि सृष्टि की जननी होती है किन्तु आज की नारी जो आधुनिकता की दौड़ में शामिल है। वो भारतीय संस्कृति को कायम रख पायेगी ….?
मैं आधुनिकता के खिलाफ नहीं हूँ, परन्तु मैं आधुनिकता के नाम पे अपनी संस्कृति को भुलाने के पक्ष में बिल्कुल नहीं हूँ।
आधुनिक रह्ते हुए, अपनी संस्कृति को किस तरह से कायम रख पाये। ये एक शोध का विषय होना चाहिये……?
©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड