लेखक की कलम से

थमें रहें, बनें रहें …

 

अरे कुछ दिनों की बात है।

जीं लें पुरानी ज़िन्दगी।

आबो-हवा भी साफ है।

जीं लें पुरानी ज़िन्दगी।

 

तेरा शुक्रिया है ‘ऐ’ ख़ुदा।

अब तक थे हम जुदा-जुदा।

दी मौहलतें तूने हमें।

मिलते थे हम यदा-कदा।

 

एक अजब सा एहसास है।

एक-दूसरे के पास हैं।

यकायक मिले जो हम सभी।

कोरोना ही इसका राज है।

 

आसमानी रंग-ए-नूर है।

प्रकृति भी अपने चरम पर।

बांटती फल-फूल कलियां।

मनहर छटा भरपूर है।

 

हां बचाव तो जरूरी है।

घर पर रहना जरूरी है।

हम हमसाया एक-दूसरे के।

फ़िरवक्त दूरी जरूरी है।

 

चांद तारों ने बरसों में।

धरती को निहारा है।

करते आभार कोरोना का।

कारण तो वो ही यारा है।

 

हम आशियां में थमें रहे।

अपने अपनों में रमें रहें।

हो जो ईश की कृपा तभी।

अपनी ज़मीं पर बनें रहें।

 

मुश्किलें जो आईं हैं।

ये हमने ही बढ़ाई है।

समझ के भी समझते नहीं।

विपदा की घड़ी आई है।

 

इसके अन्त का तो पता नहीं।

आया है क्यों ये कहा नहीं।

ऐसा न हो कहीं किसी घर में।

आटा-दाल भी हो बचा नहीं।

 

हम सौंप दें सर्वस्व अपना।

उस प्रभु के चरणों में।

वो थाम लेगा है यकीं।

नहीं मिटने देगा वो हमें।

 

विश्वास का सब खेल है।

हर श्वांस में होता नहीं।

भरोसा जिसने कर लिया

जीवन में कुछ खोता नहीं।

©सुधा भारद्वाज, विकासनगर, उत्तराखंड

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