लेखक की कलम से

महर्षि दयानंद सरस्वती …

“मूल शंकर”…..वह बालक।

  जीवन के ,

मूल मंत्र जब जान गया।

महर्षि बनकर,

 संपूर्ण,

 मानव जाति को तार गया।।

 जीवन के ,

मूल मंत्र जब जान गया।

वेदों की सत्ता का।

जब जन-जन में प्रचार किया।

हम महान भारत की संताने हैं।

मन -मन ने यह  विचार गया।

ज्ञान की खोज में।

पाणिनी व्याकरण ,

पातंजल का योग सूत्र दिया।

 वेद -वेदांग का देकर अध्ययन। मत -मतांतरो की ,

अविद्या को दूर किया।

पाखंड -खंडनी,

 पताका फहरा कर।

अंधविश्वासों को दूर किया।

धन्य हुई भारत की नारी।

 जिसके जीवन में ,

शिक्षा का आविर्भाव हुआ।

सती प्रथा , बाल विवाह को ,

रोक हर नारी का उद्धार किया।

 बुझी चिंगारी सन-सत्तावन की। फिर से उसे जीवन प्राण दिया।

 स्वराज के इच्छुक,

 हर मन को ,

महर्षि ने फिर से तैयार किया।

आर्य भाषा को देकर जीवन। संस्कृत का नाम किया।

 जन विचार को सरल कर।

“कृण्वंतो विश्वमार्यम्”

  का मंत्र…….दिया ।

 सारे संसार को श्रेष्ठ करने का। मन- मन में विचार भरा ।।

©प्रीति शर्मा “असीम”, सोलन हिमाचल प्रदेश

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