ये रौद्र रूप …
लोकतंत्र व परम्परा संस्कृति रीतिरिवाज
सब पर भारी पड़ गया कोविड का हमला आज
चुनावी हो रैलियाँ चाहे कुंभ स्नान
नवरात्रे हों मातृ के होये चाहे रमजान
कोरोना के कहर का बिगुल बजा चहुँ और
वैक्सीन के आ जाने पर भी घटा नहीं है जोर
महामारी बढ़ने लगी सुरसा वदन समान
जीवन के हर पहलू का कर दिया काम तमाम
पता नहीं इस कोरोना की कब रुक पाए चाल
दुनियाँ के सब देशों में फैला इसका जाल
मास्क सेनिटाइजर दो गज दूरी
जीवन के लिए है मंत्र जरूरी
प्रथम नागरिक देश का चाहे हो आखिरी इंसान
अमीर गरीब छोटा बड़ा सभी हुए हैं परेशान
आर्थिक संकट बढ़ गया मजदूर गरीब हुए बदहाल
ये अनुभव भोगा देश ने हाल ही पिछले साल
कर्ज बीमारी और शत्रु को हल्के में न लो तुम आज
पहला हमला गौरी का जीत गए थे पृथ्वीराज
दूजा हमला गौरी का हलके में ले गए महाराज
कोरोना का पहला हमला जिसके मिटे नहीँ हैं दाग़
रौद्र रूप में कोरोना ने फिर से लगा दई है आग
पता नहीं देगा पुनः ये कितने गहरे घाव
सँस्कृति के उलट हुए यहाँ सामाजिक बदलाव
रिश्ते व परिवार के आपसी मेल मिलाप
प्रभावित ये भी हुए पड़ गई इन पर छाप
जनम विवाह मातमघडी हो चाहें तीज त्योहार
शामिल हो नहीं पा रहे सम्बन्धी परिवार
इस महामारी से यहाँ डरा हुआ है हर इंसान
सभी को प्यारे लग रहे अपने अपने प्राण
टूटे धागे प्रेम के जैसे टूट गए रिश्ते परिवार
रिश्ते नातों पर भी इसकी जैसे पड़ी जोर की मार
मेले व उत्सवों से भरा भारत का ये सभ्य समाज
मिलना जुलना खाना पीना आपस मे होते हँसी मजाक
दैनिक जीवन के ये थे ऐसे क्रिया कलाप
ऊर्जा उमंग व उत्साह बढ़ते मिट जाते थे हर सन्ताप
एक दूजे से बच रहे आपस मे ही लोग
मन में बैठा डर का भाव की कहीं लग न जावे रोग
निशा बीतती अंत में होता सब उजियार
कोरोना भी एक दिन मिट जाएगा यार
जीवन मूल्यों की क्षति के भर जावेंगे घाव
समय बड़ा बलवान जो कर देगा बदलाव
बड़ी जरूरत अपनों की पड़ती जब हम होते थे बीमार
कोरोना का कहर है ऐसा जिसमे बने नहीं कोई तीमार
अपनों से होके अलग भोगे हैं एकांत
इस हालत में आत्मबल ही मन को करता शांत
इसी के बूते कोरोना का खाली पड़ता वार
डरना नही धैर्य पूर्वक करना इसे स्वीकार …
©प्रेम चन्द सोनी, अजरौंदा, फरीदाबाद