लेखक की कलम से

मां सरस्वती के नाम एक पत्र…

व्यंग्य

 

 

मां शारदे,

   प्रणाम,

      डॉट कॉम, सोशल मीडिया, ट्वीटर के जमाने में पत्र….?

अन्यथा न लें….. दरअसल मुझ जैसे छात्र को अभी भी दुनिया को मुट्ठी में करने के लिए संसाधन नहीं मिला है। अतः भूमंडलीकरण, इंटरनेट, ई-मेल आदि भ्रमजालों से अछूता हूँ, फलतः पत्र पर ही आश्रित हूँ। सरस्वती पूजा के इस अवसर पर इस बार आपसे ‘मन की बात’ करने की इच्छा हुई, अतः पत्र लिख रहा हूँ।

यूँ तो सब ठीक है, पर इस बार न्यायालय के आदेश के कारण स्नातक की परीक्षा कड़ाई से ली गयी और मैं सब्जेक्टली फेल होते-होते रह गया। खैर! यह जो मैं घिंच-घाच कर पास हो हुआ, इसका श्रेय तो आपको ही देता हूँ। पर एक बात बताऊँ ? मेरे सारे अड़ोसी-पड़ोसी भी फेल हो गए।

बस दु:ख इस बात का है कि मेरा जिगरी दोस्त भी ….. ख़ैर ! सबसे खुशी इस बात की हुई कि पड़ोस वाली नकचढ़ी भी…. आज भी मुझे वो दिन याद है जब मैंने उस नकचढ़ी को प्रेम पत्र लिखा था और उसने अपने भाई से मेरी अच्छी खासी हजामत बनवा दी थी।

माँ, जैसा कि आप जानती हैं, हम आपको साल में एक दिन याद करने की औपचारिकता जरूर निभाते हैं। पर इस एक दिन आपको याद करने के लिए, आपकी पूजा करने के लिए चंदा वसूलने में हमें नाकों चने चबाने पड़ते हैं। कोई चंदा देना ही नहीं चाहता। जो चंदा देता भी है, वह ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछता है कि क्या बताऊँ ?

पिछले दिनों हम एक व्यक्ति के यहां चंदा लेने गए थे। हमारे ‘यूथ क्लब’ के चंदा प्राप्ति रसीद पर ‘सरस्वती पूजा समिति’ के बदले ‘सरसती पूजा समीति’ छपा देखकर जनाब उखड़ गए। फिर तो उन्होंने चंदा लेने गए सभी छात्रों को ‘सरस्वती’ और ‘समिति’ शब्द हिज्जे लगवाकर याद करवाया और दस-दस बार लिखवाया भी।

तत्पश्चात उस व्यक्ति ने दो रुपया चंदा दिया। बताइए मां, इस महंगाई के ज़माने में दो रुपया चंदा से क्या होगा ? खैर! हमें बाद में पता चला कि वह व्यक्ति संस्कृत स्कूल का अध्यापक है, जिसे आठ माह से वेतन नहीं मिला है।

इसी प्रकार का एक और वाकया बाता रहा हूँ। हम चंदा लेने एक संगीतकार के यहां पहुंचे।

उन्होंने पूछा- ‘सरस्वती मां के हाथ में जो वाद्य यंत्र रहता है उसका नाम बताओ ?’

‘गिटार’ – एक मित्र ने झट से उत्तर दे दिया।

उत्तर सुनकर संगीत महोदय बिगड़ गए। हमें खूब खरी-खोटी सुनाने लगे। कहने लगे तुमलोग विद्यार्थी नहीं हो, विद्या की अर्थी ढो रहे हो। इतना सुनकर मुझसे भी रहा नहीं गया और मैंने कहा- ‘आप प्रश्न पूछने वाले कौन होते हैं ? चंदा देना है दीजिए, नहीं देना है मत दीजिए, ज्यादा भचर-भचर मत कीजिए। और यह भी ध्यान रखिए कि चंदा नहीं देने पर आपके फुलवारी के सारे फूल-पत्ते और छोटी-छोटी कली तक सरस्वती को चढ़ा देंगे। पिछले साल सरस्वती पूजा के अवसर पर आपकी फुलवारी का जो नक्शा हमने बनाया था वो भूल गए ?’

इतना सुनकर संगीतकार महोदय ने पैतरा बदला- ‘अरे बच्चों! मेरी बात पर गुस्साते क्यों हो ? मैं तो तुमलोग के बाप के उम्र का हूँ। चंदा ले लो, पर ….. पर…. मेरी फुलवारी मत उजाड़ना। हाँ पूजा के लिए दो-चार फूल ले जाने की मनाही तुमलोगों को थोड़े ही है।’

इस तरह की घटनाओं की एक लंबी सूची बन सकती है। बस आईआईटी तथा मेडिकल के नाम पर प्राइवेट कोचिंग चलाने वालों से जबरन चंदा वसूलकर, आपकी आराधना का सुख हम प्राप्त कर पाते हैं। हां नेशनल हाईवे पर बस-ट्रक रोकने से भी कुछ पैसे मिल जाते हैं।

हमारी समस्या यहीं खत्म नही होती, आपकी प्रतिमा के विसर्जन के समय कुछ-न-कुछ गड़बड़ जरूर हो जाती है। पिछले वर्ष आपकी प्रतिमा को ट्रक पर रखकर छात्र लोग सड़क पर नाच रहे थे। खुशी के इस मौके पर कुछ छात्रों ने ‘‘शीतल पेय’’ पी रखा था। अब ऐसी स्थिति में जबान फिसलने की संभावना तो रहती ही है न ? क्या इसे माइंड करना चाहिए ? ….. नहीं…. न ? पर किसको कौन समझाए और क्या ? कहा भी गया है – ‘भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस लगी पगुराए।’

एक छात्र का जीभ जरा सा फिसला और दूसरे ने तपाक से रामपुरी कला का प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया। इसके बाद ‘महाजनों येन गत: स पंथा:’ का कहावत का अनुसरण करते हुए कई छात्र अन्य खिलौनों से अपनी कला प्रदर्शित करने लगे। ….किसी का दांत टूटा…. किसी का हाथ… क्लाइमेक्स में खाकी वर्दी वाले आये….कुछ अस्पताल पहुंचाए गए तो कुछ की खातिरदारी बड़े घर में हुई। …. बस मां आशीर्वाद दे इस बार कुछ गड़बड़ न हो।

 अच्छा मां अब पत्र समाप्त करता हूं, आपकी पूजा हेतु चंदा वसूलने जाना है।

  आपका उपासक

   कलयुगी छात्र. 

©अभिजित दूबे, पटना

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