लेखक की कलम से

सोशल मीडिया बना बिना लगाम का घोड़ा …

आप सोच रहे होंगे ये ही शीर्षक मेंने क्यों चुना ? वह इसलिये की ये बिल्कुल सटीक है, सोशल मीडिया की वजह से जहां हमें बहुत सी ऐसी खबर मिल जाती हैं, जिन्हें मुख्यधारा मीडिया बहुत से निहित स्वार्थों के कारण नहीं दिखाता या प्रिंट नहीं करता है, वहीं एक और चलन चल गया है फर्जी खबरें और अफवाहें फैलाने का। सरकार लोगों को लगातार जागरूक कर रही है, किस तरह आप ‘फेक न्यूज़’ की पड़ताल कर सकते हैं, फर्जी खबरें वायरल न करें, और बहुत से न्यायलय के आर्डर भी हैं इस संबंध में फिर भी फर्जी खबरों पर लगाम लगाना एक चुनौती बना हुआ है।

सोशल मीडिया के इस खेल की सबसे खतरनाक कड़ी है ‘ट्विटर’ यहां आये दिन कुछ न कुछ ट्रेंड करता रहता है। कभी सही कभी ग़लत, वैसे तो यह एक सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा अबआप अपना समर्थ या विरोध जनता के बीच रख सकते हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं, लेकिन मुख्य समस्या है इसकी विश्वसनीयता, क्योंकि आप किसी खबर विशेष या अपने ट्वीट को चलाना ट्रेंड या ट्रोल करना चाहते हैं तो ट्वीटर भुगतान के द्वारा भी कर सकते हैं, यहाँ यह पता करना मुश्किल है कि कौनसी खबर कैसे ट्रेंड में बनी हुई है, इसके नियम भी संदेह के घेरे में है, थोड़े दिन पहले एक ट्रेंड चला था ट्वीटर के पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण, लोगों ने इंडिया में ट्विटर बंद करने का ट्विटर पर ही अभियान चलाया था। खैर मेंरा प्रश्न दूसरा है, जहाँ आप निजता के अधिकार की दुहाई देते हुए सरकार को ‘आरोग्य सेतु’ App के लिए अपनी निजी जानकारी देने से कतराते हैं वहीं दूसरी और उन्हीं निजता प्रिय लोगों में से कई लोग कोई भी किसी भी फेक नाम से ID बनाकर ट्विटर पे किसी को भी ट्रोल करते हैं।

सबसे ज्यादा दु:ख ये देखकर होता है कि इस भारत की युवा पीढ़ी किस दिशा में जा रही है?? अपनी राजनीतिक राय रखने और सरकार की निंदा करने में कोई गलत नहीं है किन्तु ये प्लेटफॉर्म महिलाओं को उत्पीड़ित करने के अड्डे बन गए हैं, कभी किसी अभिनेत्री, कोई युवा, छात्रा, नेत्री या किसी सामान्य लड़की की कोई बात अच्छी नहीं लगी तो लोग उनको भद्दी-भद्दी गालियां लिखते हैं, फब्तियां कसते हैं, गन्दे मीम पोस्ट करते है इस कदर ट्रोल करते हैं, की उनका चरित्र हनन करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। मेंरा सवाल है कि ये अधिकतर महिलाओँ के साथ ही क्यों होता है? क्योंकि किसी महिला के चरित्र पर उंगली उठाना सबसे आसान काम है। #बबिता फोगाट को बुरी तरह ट्रोल किया गया उसके बाद हाल ही में एक नया ट्रेंड #बोयसलॉकअपरूम को कम उम्र की लड़कियों से संबंधित आपत्तिजनक फोटोज और कमेंट्स करने को लेकर कार्यवाही सायबर सेल द्वारा की गई है, ये केस इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और इंडियन पीनल कोड की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत जांचाधीन है।

अब दूसरा मामला देखिए अभी पिछले दो दिनों से #सफुराजरगर ट्रेंड हो रहा है, ये वही सफूरा है जिसे UAPA के तहत बुक किया गया है। फिलहाल वह Covid-19 के के कारण तिहाड़ जेल में बंद है और उसे कोर्ट से जमानत से नहीं मिली है। वह तीन महीने की गर्भवती है। इसी बात पर यह ट्रेड शुरु हुआ लोग उसकी वैवाहिक स्थिति और बच्चे के संबंध में भद्दे-गंदे और अपमानजनक ट्वीट कर रहे हैं, मुझे यह समझ नहीं आता कि आखिर ये कौन लोग हैं जो ऐसे औरतों का अपमान करते हैं, कई महिलाएं भी ऐसे ट्रेंड का समर्थन करतीं हैं, हो सकता है उनमें से ज्यादातर फेक ऑकाउंट्स होंगे जो महिलाओं के नाम पर या उनकी फोटो लगाकर बनाए गए हैं।

भारत में बिना शादी के माँ बनना अपराध नहीं है और महिला विवाहित है तब भी और नहीं है तब भी, लोगों को क्या अधिकार है कि उसकी गर्भावस्था पर अश्लील कमेंट्स करे ? यह उसका नितांत व्यक्तिगत मामला है। मैं सफूरा का समर्थन नहीं कर रही हूं, उनके ऊपर जो केस चल रहा है वो कानून कर अंतर्गत है, किन्तु लोगों को किसने हक दिया उसे बदनाम करने का???

अब तीसरा केस देखें। आज से नया ट्रेंड शुरू हुआ वो भी #सफुराजरगर हस्बैंड ये सब ट्रेंडस में बताया जा रहा है कि वे शादीशुदा है और अब हिन्दू महिलाओं को गाली दी जा रही है, उनके चरित्र पर कीचड़ उछाल जा रहा है आखिर क्यों?? सवाल फिर वही है आखिर कौन है वो लोग जो महिलाओं को निशाना बनाते हैं, जिन्हें सिर्फ मौका मिलना चाहिए वो किसी भी महिला का सोशल मीडिया पर चरित्र हनन करने को तैयार बैठे रहते हैं, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि महिला नेत्री है, अभिनेत्री है, डॉक्टर या खिलाड़ी है, बस महिला है इसीलिए तो उसके चरित्र पर कीचड़ उछालने में बहुत मज़ा आता है, कैसी विचित्र ओछी और कुत्सित मानसिकता है यह, इसका कोई संबंध नहीं लेफ्ट या राइट विंग से।

पुरुष बस पुरुष है, वह महिलाओं को कैरेक्टर सर्टिफिकेट देने के लिए कुछ भी करेगा और सोशल मीडिया बन्दर के हाथ में उस्तरे के जैसा हो गया है, इसका कोई ओर न छोर, सरकार चाहे “डाटा प्रॉटेक्शन बिल” ले आए या “आईटी एक्ट संशोधन बिल” जब तक पुरुष अपनी सोच नहीं बदलेंगे। समाज अपनी सोच नहीं बदलेगा, हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे ये फूहड़, भद्दे, अश्लील ट्रेड्स चलते रहेंगे और हम लाचार देखते रहेंगे!

©शीतल रघुवंशी, अधिवक्ता, दिल्ली उच्च न्यायालय

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