लेखक की कलम से

फरियादी …

अभी चार साल पहले ही तो नौकरी लगी थी निर्मल की, सरकारी महकमे में और क्या चाहिए। एक दिन निर्मल के हाथ पर हल्की सी चोट आ जाने की वजह से वो कंप्यूटर पर काम नहीं कर पा रहा था। तो निर्मल ने अपनें बड़े साहब को कॉल किया और कहा की सर मुझे दो दिन की छुट्टी चाहिए।

साहब ने पूछा क्यों ? क्या हुआ तुम्हें ! हुआ तो कुछ नहीं साहब बस हाथ में थोड़ी सी चोट आई है। कंप्यूटर पर  कार्य नहीं कर पाऊंगा, साहब ने कहा निर्मल तुम्हें तो पता है ना की काम का दबाव आजकल कुछ ज्यादा ही है ।ऐसा करते हैं तुम अनुज का काम देख लेना और वह तुम्हारा,वैसे भी घर पर बैठे-बैठे बोर ही हों जाओगे।

निर्मल बोला ठीक है।सर आता हूं, अनुज का काम डाक से आए दस्तावेजो की जांच करके उनका जवाब लिखना व साहब को किसी विशेष डाक के बारे में अवगत कराना था। निर्मल ने एक-एक कागज को पढ़ पढ़ कर अनुज के सहयोग से आए हुए पत्रों का जवाब टाइप करवाता गया। साहब के निर्देशों को सुनता भी रहा ताकि कोई गलती ना हो जाए।

तभी एक लिफाफे पर उसकी नजर पड़ी जो शायद आज ही किसी ने आसपास की डाक से भेजा था। लिफाफे को खोला तो उसमें सवाल की जगह जवाब लिखा था । शुक्रिया सर, जो आपने चार साल बाद मेरे स्थानांतरण की फाइल आगे पहुंचाई ।लगता है आपके विभाग के मंत्री जी वोट बैंक का समीकरण बिठा रहे हैं।

पर अब मुझे इसकी जरूरत नहीं है कृपा करके मेरा पदस्थापन यथावत रखने का अनुरोध है। क्योंकि जिसके लिए मैं पिछले चार साल से मंत्री जी के दरवाजे पर फरियादी बनकर जा रही थी। वह अब इस दुनिया से विदा ले चुकी है ।

आपको व आपके विभाग के मंत्री जी का दिल की गहराइयों से शुक्रिया।

 

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                 

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