लेखक की कलम से

बचकर रहना …

मेरे दोस्त ! मुझ से बचकर रहना

सीख रही हूँ आजकल

हर किसी को मूर्ख बनाना

मीठे बन कर छुरी चलाना

सबसे काम निकलवाना

किसी के काम न आना

मेरे दोस्त ! मुझ से बचकर रहना

सीख रही हूँ आजकल

सरेआम धोखा देना और

सफाई से मुकर जाना

नफरत दिल में रखना

बहुत प्यार से मुस्कुराना

मेरे दोस्त !

सीख रही हूँ आजकल

आस्तीन का साँप होना

और खुद को हमदर्द बताना

बात -बात पर झूठ बोलना

कहानी हरीशचंद्र की सुनना

मेरे दोस्त !

सीख रही हूँ आजकल

रिश्तों में खेल खेलना

पैरों तले की ज़मीन खिसकाना

ठग्गी में माहिर होना और

वाक-छल से सबको हराना

मेरे दोस्त !

चाहती तो नहीं तुम्हें खोना

मगर दूर तलक है मुझे जाना

ज़माने के हुनर सीखना -सिखाना

क़ामयाबी की कुर्सी पर इतराना

मेरे दोस्त !

मेरे दोस्त !

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़

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