लेखक की कलम से

स्मृतियों में …

स्मृतियों में जा बस हो!

मन कर द्रविड़ व कुंठित,

आंखें कर सजल!

स्श्मियों से आलोकित कर,

चल पड़े अनंत पथ पर…

सृजन की नव श्रृंखलाओं का उदय कर!

अब कौन वितरित करेगा अनमोल पल?

यह कौन सा संकल्प लेकर तुम बढ़े हो?

क्या और कोई विकल्प शेष न था बंधुवर?

कर निःशब्द

जीवन,मुख,लेखनी…

हृदय व्यथित,मन एकाकी,

सांसे अवरुद्ध,

वाक्यशून्य,भावशून्य,

अनर्थ कर

कहां गए तुम?

स्मृतियों में जाकर बस गए हो!

जीवन तुम बिन,

चहक बिन पाती,

मंदिर बिन साथी ,

वृक्ष बिन पर्ण,

सरोवर बिन पंक,

अम्बर बिन नील,

देह बिन प्राण,

जीव बिन मुस्कान,

भाव बिन शब्द

बंधुवर!जा बसे हो स्मृतियों के लोक में….

 

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                           

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