लेखक की कलम से

परदेशिया लव …

पत्थर में उसे चुनवाया गया,

सौ पर्दे बिच छुपाया गया ।

 

हर बार प्रेम ने वही ज़िद की,

हर बार उसे ठुकराया गया।

 

कह पागल प्रेम बुलाया गया ,

नफ़रत से नीचे गिराया गया ।

 

इतने से जब जी नही भरा ,

फांसी पर प्रेम लटकाया गया।

 

आख़िर में वो जग छोड़ गया ,

तब शौक़ से शोक मनाया गया।

 

घर देख़ के ख़ाली प्रेम का फ़िर,

परदेशिया लव को मंगाया गया।

 

आधुनिकता का चश्मा देकर ,

दुनियां को यूँ भरमाया गया ।

 

अब प्रेम बन गया देह भूख ,

वेलेंटाइन डे पर्व मनाया गया ।

 

अब प्रेम नहीं पुरखों खुश हो,

तेरा पौरुष तो नहीं जाया गया।

 

उस जगह गलत ने घर कर ली,

जिस जगह से सही मिटाया गया ।

 

अब प्रेम नहीं न प्रीति है ,

नयनों के सुख की रीति है।

 

लो हारी अपनी संस्कृति है,

पाश्चात्य सभ्यता जीती है ।

 

©प्रीति सुमन, मुंबई                                                           

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