लेखक की कलम से

खुर्शीद हयात की तीन कविताएं

 (1)

एक तुम थे कि

हर लम्हा

आसमाँ से

लफ़्ज़ – महल में

उतरते चले गए

एक मैं था कि

परिंदों की हर उड़ान में

तुम्हें ढूँढता रहा।

(2)

ठहर गयी थी लहर नदी की

लगता है कुछ ऐसे

मेरे मासूम इश्क़ को.

थाम लिया मिट्टी तुम ने कैसे

नीम , पीपल , बरगद

हर मौसम मे छतरी बनते थे

चिड़ियों जैसे मन मा मोरा

फुदकन चहकन बनते थे

कोयलिया की राग री मिट्टी

गुम हो गयी मनवा की डाली से.

(3)

मेरी रूह

मेरे ” मैं ” के साथ

सजदे में थी .

और तुम ने

मेरे जिस्म को

मेरा ” मैं ” समझ लिया .

फर्श पर मैं कहाँ था ?

खुर्शीद हयात
दपूम रेलवे, बिलासपुर

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