लेखक की कलम से

दौड़ा-दौड़ा भागा-भागा सा …

 

भाग -( 5 )

 

वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यकाल इन तीनों काल को मैंने, आपने, सभी ने पढ़ा है। मैंने तो पढ़ाया भी है। पर कभी सोचा नहीं था कि इतिहास में चौथा काल भी आ जाएगा और मैं इसकी साक्षी बनूंगी। जी हां ..चौथे काल यानि ‘ कोरोनाकाल ‘ की बात कर रहीं हूं। “अथ-श्री-महाभारत कथा” टाईप्स मैंने इस काल के पिछले चार भागों में अपने भुक्तभोगी अनुभवों से आपको रुबरु कराया था। आज इस भाग में घर से बाहर का हालचाल है। आखिर चारदीवारी से बाहर जाने का सुख ही तो इंसान के जीवन का चरम सुख है।

एक तरफ कोरोना काल से जूझते अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद जारी है तो दूसरी तरफ कोरोना को टक्कर देने और भगाने की जी-तोड़ कोशिश के साथ अनलॉक की घोषणा हो गई। घर में रहना, नियमों में जीना लोगों को बैचैन कर रहा था अब तो खूला आकाश है घूमो, पिकनिक मनाओ, बाहर का खाना खाओ, चाहो तो तीर्थयात्रा कर आओ, पहाड़ घूमो ..मैं चाहे ये करुं मैं चाहे वो करुं ..मेरी मरजी ..जी हां साहब सभी जगह के हालात यहीं हैं ..अब परिस्थितियां ऐसी हैं कि ‘हमें तीर भी चलाने हैं और परिंदे भी बचाने हैं’ …

अब बाजार सज गए हैं ..एक से बढ़कर एक उत्पाद जो आपको कोरोना से राहत दे सकते हैं ..बाजार में मिल रहे हैं। हर कंपनी मास्क, सैनेटाइजर और इम्यूनिटी बढाने वाली प्रोडक्ट उतार रही है। बस..नहीं बन रही है तो वो एक चीज है कोरोना की वैक्सीन ..सोचती हूं मेरे जबान को सच्ची कड़वी बात करने की बहुत आदत है। देखिये न अर्थव्यवस्था सुधारने की बात हो रही है और मैं बस एक ही राग अलापे जा रही हूं .वैक्सीन ..अरे पहले बाजार सज जाए ..संक्रमितों की संख्या ‘गिनती’ से बाहर हों जाएं ..तभी न … खैर ..खाने पीने, नहाने धोने, दवाई दारु, पति पत्नी, यानि हरेक चीजों ..हरेक संबधों में कोरोना घुस गया है। कोरोना न हुआ कुछ ‘वो’ टाईप का तीसरा आदमी ..तीसरा कैरेक्टर ..तीसरा चरित्र ..हो गया जिसके बिना न सुबह होती है और न ही शाम। कभी कभी तो इस मुए पर मुझे गुस्सा आता है। कहीं दिखे तो मुंह नोच लूं ..नासपीटे का ..। भरी गरमी में आईस्क्रीम की बजाय काढ़ा पिला दिया इसने। काढ़ा से याद आया ..काढ़ा की चीजों से नये उत्पाद बनाकर अब बाजार फायदा उठा रहा है ..दालचीनी, पुदीना, धनिया, लौंग, तुलसी, हल्दी, अजवायन आदि कुछ चीजें ऐसी हैं जो ‘इम्यूनिटी बुस्टर्स ‘ हैं। अब खाखरा, गाठिया, नमकीन, मिठाई, समोसा, गुपचुप बनाने वाले लगे हुए हैं इन चीजों से बाजार सजाने में ..कुछ चीजें तो बाजार में आ भी गई हैं। और लोग खुश हैं कि अब इसे खाने से स्वास्थ्य पर कोई नुकसान नहीं होगा। सोचती हूं जब कोरोना के नाम पर नर्सिंग होम, दवाई दुकानदार, किराने वाले अपनी दुकान चमका सकते हैं तो ये तो बेचारे छोटे दुकानदार हैं। मतलब यह है कि किसी भी पुराने सामान पर कोरोना फ्री का एक स्टिकर चिपकाओ और फिर टूट पड़े हैं सब बाजार में। बाजार की भीड़ और जाम देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

कुछ दिनों में कोरोना फ्री बर्तन, चूल्हा, ज्वेलरी, कॉस्मेटिक, कपड़े, गाड़ी, कोरोना फ्री बाथ, कोरोना धूप, टरमरिक केक, दालचीनी पिज्जा सभी आ जाएंगे और हम सब जो बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे – इस कोरोना ने हमें बदल दिया है ..दो कपड़े ही चाहिए जीने के लिए, पूजा पाठ, धर्म कर्म, सेवा और भी न जाने क्या क्या …सब बीते दिनों की याद बन जाएगी और हम आत्मनिर्भरता का रिकॉर्ड तोड़कर कोरोना फ्री उत्पाद बनाकर शान से मुस्कुरा रहे होंगे। सुनने में बहुत कड़वी बातें लग रही हैं साहब ..पर अपने दिल से पूछिये न ..जवाब मिल जाएगा।

एक मुहावरा पढ़ा था ‘ काल के गाल में समा जाना ‘ सोच रही हूं आखिर कितने ?? हम सब संख्या बने हुए हैं ..कल का किसी को पता नहीं है ..पर हम बेपरवाह घूम रहे हैं .किसी अज्ञात सुख की तलाश में ..और ढीठ कोरोना अट्टहास कर रहा है।

 

  ©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़  

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