लेखक की कलम से

प्रेमचंद और उनके विचार …

विचारधारा से प्रेमचंद को परहेज न था, पर वे किसी विचारधारा के अंधे समर्थक नहीं थे। समाज में कोई भी व्यक्ति अपने परिवेश और युगीन धाराओं से प्रभावित होता है। प्रेमचंद का भी युगीन परिस्थितियों से पर प्रभावित होना स्वाभाविक था। वे ऐसे साहित्यकार थे जो कलाकार की तटस्थता में विश्वास न करते थे। वे जनता के सुख- दुख में भाग लेकर किसी समन्वय वादी मार्ग की खोज में विश्वास करते थे।

प्रारंभ में प्रेमचंद आर्य समाजी विचारधारा से प्रभावित हुए। इसके द्वारा नारी मुक्ति अभियान, समाजिक कुरीतियों से मुक्ति सम्बन्धी विचार तथा समाज सुधार ने उन्हें प्रभावित किया। फलस्वरूप उन्होंने बल- विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया। किन्तु जब इसी आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन से हिन्दू- मुस्लिम एकता में दरार पड़ने लगी तब इससे अलग होने में उन्हें देर न लगी। वे मानव प्रेमी थे, किसी वर्ग विशेष के नहीं।

उनकी दृष्टि न केवल भारत बल्कि विश्व पटल पर हो रही घटनाओं पर भी रहता था। उन्होंने टॉलस्टॉय के साहित्य का का गहन अध्ययन किया। गाँधीजी के अहिंसावादी विचारों से तो पूर्व परिचित थे ही। रूसी क्रांति के मर्म वे जानते थे। इसका प्रभाव उनकी रचना ‘प्रेमाश्रम’ में देखी जा सकती है। प्रेमचंद स्वयं भी सच्चे कर्मयोगी थे। गाँधीजी के प्रभाव से ही उन्होंने अपने 20 वर्षीय नौकरी को इस्तीफा दे दिया। उनके गांधीवादी विचारधारा की स्पष्ट झलक ‘रंगभूमि’ में देखी जा सकती है।

वे किसी भी चीज के अंधानुकरण में विश्वास न रखते थे। जब 1922 में गाँधीजी ने चौराचौरी की घटना के बाद असहयोग आंदोलन को वापस लिया, तो प्रेमचंद को यह बात रास नहीं आयी। फलतः उनका मोहभंग हुआ। गाँधीजी बहुत सी भारतीय रुढियों का विरोध करते हुए भी उनसे समझौता कर बैठते थे। वे राजनीति को धर्म से जोड़ने का प्रयास करते थे जबकि प्रेमचंद धार्मिक रूढ़ियों और ढकोसलों के घोर विरोधी थे। प्रेमचंद गलत लगने वाली चीज़ों का विरोध करने में नहीं झिझकते थे, चाहे उनके श्रद्धा पात्र गाँधीजी ही क्यों न हों।

आगे चलकर प्रेमचंद मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित दिखते हैं। उपन्यास ‘गोदान’ में वे वर्ग- संघर्ष की ओर बढ़ते दिखाई पड़ते हैं। लेख ‘महाजनी सभ्यता’ में भी इन्होंने भारत में शोषक तथा शोषित दलों के अस्तित्व और संघर्ष को स्वीकारते हैं। प्रेमचंद की की दृष्टि मानवमात्र के कल्याण, आत्म- परिष्कार और वैयक्तिक नैतिकता पर टिकी थी। स्वराज प्राप्ति उनका उद्देश्य था। इसके लिये उन्हें जो अच्छा लगा उसे सहर्ष स्वीकारा और बुरा लगने पर बेहिचक त्याग दिया।

 

©डॉ. उर्मिला शर्मा, हजारीबाग, झारखंड

परिचय- सहायक प्राध्यापक, अन्नदा कॉलेज, पीएचडी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में आलेख प्रस्तुति, कविता व कहानी लेखन, आकाशवाणी से समय – समय पर वार्ता प्रसारित।

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