लेखक की कलम से

समझौता….

 

क्या कहूं क्या न कहूं, जिंदगी कुछ ऐसे ही चलती है।

हर तरफ़ बस समझौते की, एक डोर ही मिलती है।।

 

अपनो के साथ सपने जो देखे, गलती वहीं कर गए।

खुद के सपनों को ही, समझौते की डोर में पिरो गए।।

 

चलती जा रही है ज़िंदगी, उन्नीस और बीस के अन्तर में।

जग जाहिर जो हाे गई कमियां, एक खुशी के बदले में।।

 

हर एक कि ख्वाईशों को, पूरा जो करते जाओगे।

खुद के लिए देखे सपने को, तार – तार कर जाओगे।।

 

जिसने भी तुम्हें गलत समझा होगा, वहां भी समझौता करोगे।

खुद को साबित करने के लिए, हर राह पर रोओगे।।

 

सही रहोगे जितना झुकोगे, दुनियां उतना ही झुकाएगी।

बस समझौते ही करते करते, यह जिन्दगी बीत जायेगी।।…

 

 

©सुरभि शर्मा, शिवपुरी, मध्य प्रदेश

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