लेखक की कलम से

संविधान और हम …

संविधान देश की सर्वोच्च विधि है। यह सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों को परिभाषित करता है। विधायिका विधि बनाती है, कार्यपालिका उन्हें लागू करती है और न्यायपालिका इन विधियों का निर्वचन करती है। संविधान यह अपेक्षा करता है कि सरकार के तीनों अंगों में सामंजस्यपूर्ण संबंध हो। संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका को विशिष्ट स्थान दिया है। वह नागरिकों के मूल अधिकारों का सजग प्रहरी है। परंतु हाल के दशकों में सरकार के तीनों ही अंगों पर कुछ छींटे पड़े है।

किसी भी राष्ट्र के लिए उसके संविधान का बहुत अधिक महत्व होता है। यह केवल चार अक्षरों का शब्द या एक पुस्तक मात्र नहीं वरन् देश का विधायी निर्देशक है। देश की आजादी को वास्तव में भारत का संविधान ही परिभाषित करता है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में यह बहुत बड़ा अंतर है। गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शब्दों में ‘’आजादी से मतलब मानसिक आजादी से है, सामाजिक समानता से है। ऐसी आजादी से है जहां सभी को समानता हासिल हो, सभी का सर ऊंचा रहे।‘’ भारत का संविधान अपने नागरिकों को देश के प्रति अधिकार एवं कर्तव्यों को समझने का दायित्व प्रदान करता है।

अगर हम अपनी आजादी के 74 वर्षों के सफर को देखें एक हद तक हमने इस लक्ष्य को हासिल किया है, जिसमें इस देश की संविधान का बहुत बड़ा हाथ रहा है। एक व्यक्ति के लिए भले ही 70 वर्ष का समय बहुत ज्यादा हो परन्तु एक राष्ट्र के लिए यह समय बहुत अधिक नहीं होता और वो भी भारत जैसे देश के लिए जो सदियों की दासता के बाद स्वाधीन हुआ हो और आजादी में उसे सदियों की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक रूप से टूटे भारत की विरासत मिली हो। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारत ने जो सफलता पाई है उसमें इस देश की संवैधानिक व्यवस्था का बहुत बड़ा योगदान है। चाहे शिक्षा हो, खाद्यान्न हो या स्वास्थ्य सभी में भारत ने प्रगति दर्ज की है।

परंतु आज भी यह देश कई चुनौतियों के बीच जूझ रहा है। इस देश का आम नागरिक कई बार यह सोचता है कि क्या हमें आजादी मिली भी हैं? अशिक्षा, बेरोजगारी, सांप्रदायिकता, भूखमरी जैसी समस्यायेँ आज भी व्याप्त है। अत: उसे इस देश के संविधान में भी खोट दिखाई देता है। परंतु यह सोच गलत है। क्योंकि संविधान हमें लैंगिक समानता, न्यायिक समानता का अधिकार देता है। साथ ही हमारे अधिकार भी सुरक्षित है।

ऐसे में राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ ही देश की जनता को राष्ट्र को संविधान समर्पण के 71वीं वर्षगांठ पर देश की संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद के समापन भाषण की इन पंक्तियों को स्मरण करना होगा। संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद ने समिति को संबोधित करते हुए कहा था “यदि लोग, जो चुनकर आएंगे योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वह दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता। आखिरकार एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है। हमारे में सांप्रदायिक, जातिगत, भाषागत और प्रांतीय अंतर है। इसके लिए दृढ़ चरित्र वाले और दूरदर्शी लोगों की जरूरत है जो छोटे छोटे समूह तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान न दें।”

इस संबोधन से स्पष्ट है कि देश को एक सशक्त, पारदर्शी नेतृत्व की जरूरत प्रारंभ से ही रही है। ऐसा नेतृत्व जो देश के व्यापक हितों को समझे। न कि छोटे-छोटे समूहों तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान करें। यह सही है कि राष्ट्र की सफलता में नेतृत्व शक्ति का बहुत बडा हाथ होता है परंतु इस नेतृत्व शक्ति की सशक्तता में सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में सामंजस्यपूर्ण संबंधों के साथ ही जनता की बड़ी भूमिका होती है। देश को प्रगति-पथ पर अग्रसर करने में इनकी भूमिका स्पष्ट है और इनकी भूमिका को रेखांकित करने में संचार माध्यमों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि जनमत निर्माण में इनकी स्पष्ट भूमिका है। हम सौभाग्यशाली है कि हमारा संविधान इनकी स्पष्ट व्याख्या करता है। पर कई दफा ईमानदार नेतृत्व के अभाव में हम इस व्याख्या को समझने में असफल रहे है ऐसे में संविधान कहाँ दोषी? यहीं पर डॉ राजेंद्र प्रसाद के उद्द्बोधन को समझने की आवश्यकता है।

26 नवंबर का यह दिन हमें इस पर चिंतन करने का अवसर देता है। इसी ऐतिहासिक तिथि को संविधान सभा के ड्राफ्टिंग समिति के चेयमैन डॉ॰ बी॰ आर॰ आंबेडकर संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय संविधान की मूल प्रति प्रदान किए थे। भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर, 2015 से संविधान दिवस मनाया जा रहा है। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। 26 नवंबर का दिन संविधान के महत्व का प्रसार करने और डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के विचारों और अवधारणाओं का प्रसार करने के लिए चुना गया था। इस दिन संविधान निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य एवं स्वतन्त्र भारत में शिक्षा प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ सर हरीसिंह गौर का जन्मतिथि भी है।

यह जरुरी है कि भारतीयता एवं मानवता हेतु हम दुनिया के सबसे बड़े एवं लचीले संविधान की व्यापकता को समझें। हालांकि यह तिथि मुम्बई हमले की भी याद दिलाता है जब धार्मिक उन्माद के नाम पर हमसे ही अलग हुए पाकिस्तान ने मुम्बई की आंतकवादी घटना को अंजाम दिया था। पाकिस्तान का जन्म भी हमारे संविधान की मूल आत्मा को नष्ट करता है। भारतीयता की मूल भावना को कमतर करता है। भारतीयता हमें पंथ, सम्प्रदाय से इतर एक भारतीय नागरिक बनने को अभिप्रेत करता है जिसके लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है। हमारा संविधान इसी मूल भावना की बात करता है।

संविधान, हमारे लिए सबसे बड़ा और पवित्र ग्रंथ है। एक ऐसा ग्रंथ जिसमें हमारे समाज की, हमारी परंपराओं, मान्यताओं के समावेश के साथ ही हमारी जीवन शैली को साकार करने का भी आख्यान है वहीं हमारी चुनौतियों का समाधान भी है। हमारा संविधान दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नागरिकों को जहां अधिकारों के प्रति सजग रखता है वहीं उसे कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी बनाता है। संविधान की रक्षा के लिए यह जरूरी है कि हम अपने दायित्वों को समझें। अधिकारों और कर्तव्यों के बीच अटूट रिश्ता है। हमारा संविधान ‘हम भारत के लोग’ से शुरू होता है। भारत के लोग ही इसकी ताकत हैं, इसकी प्रेरणा हैं और हम ही इसका उद्देश्य हैं।

भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार रहे भारतरत्न आम्बेडकर मजबूत और एकजुट भारत के प्रखर उद्दघोषक रहे। हिंदी और अंग्रेजी दोनों में ही हस्तलिखित और कैलीग्राफ्ड भारत के संविधान जिसमें किसी भी तरह की टायपिंग या प्रिंटिंग का इस्तेमाल नहीं किया गया को समिति के अध्यक्ष को सौंपते वक्त बाबा साहेब आंबेडकर ने देश को स्मरण कराते हुए कहा था ’भारत पहली बार आजाद हुआ 1947 में, या गणतंत्र बना ऐसा नहीं है भारत पहले भी आजाद था। आज़ादी तो हो गई लेकिन क्या इसको बनाए रख सकते हैं?’ यह दिवस हमें सोचने का, विमर्श करने का, जागरुक करने का अवसर प्रदान करता है।

प्रसंगत: भारत के सशक्त लोकतंत्र के लिए विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका का आदर्श समन्वय स्थापित हो इस हेतु भारत का संविधान महत्वपूर्ण अवसर देता है। इस हेतु यह जरूरी है कि सरकारों के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग को संविधान के बारे में जागरुक किया जाए। यह दिवस इसका अवसर प्रदान करता है। आइए! संविधान को सशक्त करने में अपना योगदान दें।

 

संदर्भ :

  • भारत का संविधान – जे एन पाण्डेय
  • विकीपीडिया

 

©डॉ साकेत सहाय, नई दिल्ली

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