लेखक की कलम से

श्रद्धा ही……. श्राद्ध है …

 

श्रद्धा ही श्राद्ध है।

इसमें कहाँ अपवाद है।

 

सत्य …..सनातन सत्य।

जो वैज्ञानिकता का आधार है।

इसमें कहा अपवाद है।

 

श्रद्धा ही श्राद्ध है।

 

सत्य -सनातन संस्कृति पर,

जो उंगलियां उठाते है।

इसे ढोंगी,

ढपोरशंखी बताते है।

वो भरम में ही रह जाते है।

आधें सच से,

सच्चाई तक,

कहाँ पहुंच पाते है।

 

श्राद्ध श्रद्धा और विश्वास है।

यह निरीह प्राणियों की आस है।

यह मानव कल्याण का सृजन है।

यह पर्यावरण का संरक्षक है।

 

यह ढ़ोग नही है।

यह ढ़ाल है।

यह मानव का आधार है।

इसीसे निकलें,

सभी धर्म और विचार है।

 

सत्य सनातन को,

कौन झुठला सकता है।

लेकिन अफवाहें फैला कर।

इस पर आक्षेप तो

लगा ही सकता है।

 

रीतियों को,

कुरीतियां बता कर,

कटघरे में खड़ा तो,

कर दिया गया।

 

क्या……?

हमनें और आप ने,

सच को समझने का,

कभी हौंसला किया।

हम समझें नही।

लेकिन हमने,

हां में हां तो मिला दिया।

 

फिर श्रद्धा ……

…………कहाँ श्राद्ध है।

 

श्राद्ध को लेकर,

भ्रांतियां और अपवाद फैलाते रहे।

 

लेकिन,

सनातन सत्य को न समझे।

उसी से निकल कर,

नये विचारों का गुनगान गाते रहे।

 

श्राद्ध को,

पितृ तृप्ति तक पाते रहे।

निरीह प्राणियों का पोषण,

क्या संस्कार देगें.

अगली पीढ़ी को,

यह भूल जाते रहे।।

 

मानता हूँ……

जब शरीर ही नही है…..

तो अन्न का पोषण किस अर्थ में…

हम ढ़ोग कह कर,

यह बिगुल तो बजाते रहे।

लेकिन सही अर्थ तक,

हम कहाँ पहुंच पाते रहे।।

 

क्यों नही समझ पायें।

असंख्य जीवों के,

पोषक तो मनुष्य ही है।

क्या उदाहरण दे…

जिस से वह,

अपनों से,

और निरीह जीवों से जुड़ पाते।

 

संस्कार और संस्कृति को,

जब सही ढंग से,

नही जान पाते है।

तब ढोंगी लोग,

भावनाओं से,

छलावा कर

मानव को भटकाते हैं।

 

  ©प्रीति शर्मा, सोलन हिमाचल प्रदेश   

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