बेटियां …
जाने कहां गुम हो गई ।
जाने कहां गुम हो गई ।।
आंगन में चहकती बेटियां ,
धरती पर फुदकती चिड़ियां ,
फूलों की महकती लड़ियां ,
बागों में खिलती कलियां ,
न जाने कहां खो गई ।
जाने कहां गुम हो गई ।।
बेटों के नखरे नाज ,
सब सहना चाहे आज ,
प्रकृति को उजाड़ ,
करे प्रदूषण बढ़ाने का काज ,
जाने इंसानियत क्यों सो गई।
जाने कहां गुम हो गई ।।
बढ़े धरा में जब-जब अत्याचार ,
आयीं ले नारी अवतार ,
दुर्गा, लक्ष्मी, सीता बन,
करतीं दुष्टों का संहार ,
फिर क्यों, कोख से विदा हो गई ।
जाने कहां गुम हो गई ।।
संतानों में भेद जहां ,
दुर्गति निवास करे वहां ,
बेटी को कुचलोगे ,
तो बहू को तरसोगे ,
बेटियां देवी से कब बोझ हो गई।
जाने कहां गुम हो गई ।।
बेटी जब पूजी जाती थी,
यह भूमि सोने की चिड़िया कहाती थी,
भौतिकता जब से बढ़ी है ,
नैतिकता तब से घटी है ,
खुदगर्जी के कारण , खुशियां खो गई ।
जाने कहां गुम हो गई ।
जाने कहां गुम हो गई ।।
©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)