लेखक की कलम से

वाटरगेट साजिश के पांच दशक …

वाटरेगट ? राजधानी वाशिंगटन में पोटेमेक नदी के निकटवाला स्थल। स्मृति पटल को पोछिये। दमक कर याद आ जायेगा। ठीक पचास साल पुरानी (रविवार, 18 जून 1972 की) खबर है। तब सर्वशक्तिमान अमेरिका के महाबलशाली रिचर्ड मिलहाउस निक्सन पर विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यालय में सेंधमारी के कारण महाभियोग चला था। निक्सन ने ल​ज्जा के मारे त्यागपत्र दे दिया था। जलील हुये। खलनायकी का इतिहास रचा। उस दौर में हीरो थे हमपेशेवर दो अदना रिपोर्टर—एक उन्नीस साल का तो दूसरा बीस का। तेज तर्रार थे, उभरती हुयी जवानी थी, इसीलिये निडर थे। फिर काहे का, किससे डर? उनके साहस से खोजी पत्रकारिता विश्व में कीर्ति के एवरेस्ट पर चढ़ गयी थी। मीडिया संस्थानों में भर्ती के नये रिकार्ड बन रहे थे। युवजन में सैनिक के बाद श्रमजीवी पत्रकार बनने की आकांक्षा कुलाचे भर रही थी। राष्ट्रपति को गिराने वाले इस युवाद्वय ने युगांतरकारी घटना को अंजाम दिया था। दुनिया के हम जैसे रिपोर्टरों के लिये वे सदा यादगार हैं। वाटरगेट साजिश को निर्भयता से पर्दाफाश करने वाले वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार युगों तक आराध्य रहेंगे। अनुकरणीय उदाहरण हैं।

आज यह घटना बरबस याद आ गयी। कारण है। इस कलंकपूर्ण वाटरगेट हादसे के मूल रचनाकार और रिचर्ड निक्सन के खास साथी जार्ज गार्डन लिड्डी का कल नब्बे वर्ष की आयु में वर्जीनिया में निधन हो गया। उनकी स्मृतिमात्र से पत्रकारी शौर्य की गाथा आखों के सामने आ गयी। मानों कल की बात हो। कल निधन तक अपने किये पर उनमें लेशमात्र पश्चाताप भी नहीं दिखा। बल्कि टीवी पर तेवर तर्रार भरे ही रहते थे। अपनी कार में शान से प्लेट लगाते थे : ”एच—टू—गेट” (पानी का रासायिनिक फार्मूला है)। वाटरगेट काण्ड की बहादुरी को बिल्ला माने बैठे थे।

सालो से जेल काटने के बाद उन्हें राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने माफी दे दी। तब ये साजिशकर्ता रिहा हुआ था। चार दशकों तक वे बेशर्मी से अपने वाटरगेट वाले हिम्मती कारनामें के किस्से टीवी पर सुनाते थे। बताते थे कि एडोल्फ हिटलर उनसे बात किया करता था।

क्या संयोग था। उस वर्ष (1971) ही मेरी मुम्बई से अहमदाबाद फिर बडोदरा पोस्टिंग हुयी। मेरी पहली ही स्टोरी ”टाइम्स” के लिये थी कि ”वाशिंगटन के वाटरगेट” की भांति बडोदरा में भी एक पानी गेट है। मगर वह केवल ऐतिहासिक द्वार है जो मांडवी मोहल्ले के पास है। वहां पानी की बूंद तक नहीं है। गायकवाड नरेशों ने बनवाया था। यह पानी गेट बडोदरा नगर की पूर्वी दिशा में किलाये—दौलताबाद के नाम से मशहूर है जो अजब तथा राजे झीलों के समीप है। इसे राजा खलील खान ने बनवाया था। इसमें जालीदार झरोखे पर कमल के निशान बने है। इसी पर एक झुका हुआ लोहे का छड़नुमा टुकड़ा लगा है जिसे बड़ौदा की नाक कहा जाता है।

फिलहाल राजधानी वाशिंगटन में छह इमारतों से बना बहुमंजलीय वाटरगेट होटल है। यहां की विशाल छठी मंजिल पर डेमोक्रेटिक पार्टी ने (1971) राष्ट्रपति चुनाव में अपना अभियान मुख्यालय खोला था। वहां दिवंगत गोर्डन लिड्डी ने कुछ बढ़ई लोगों की मदद से उस कार्यालय में जासूसी करने की योजना रची और विपक्षी के दस्तावेज चुराये थे। पुलिसिया जांच के दौरान चौकीदार फ्रैंक विल्स ने कुछ अजनबियों को सेंध मारते पकड़ा। पता चला वे सब सत्तारुढ रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक, गुप्तचर थे। गिरफ्तार हुये। वह दिन शनिवार था। तारीख 17 जून 1972 जब यह पांच सेंधमार पकड़े गये थे। दैनिक ”वाशिंगटन पोस्ट” के रिपोर्टर कक्ष में फोन की घंटी बजी। संवादददाता एल्फ्रेड लीविस को सूचना मिली कि डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यालय में सेंधमार पकड़े गये। तभी यशस्वी संपादक बेन ब्रेडली ने नगर संस्करण संपादक बेर्री सुस्मेन को विवरण मंगाने का निर्देश दिया।

 

continue……                             part 1

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली                   

 

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