समस्याएं अनेक कारण एक …
आँख खुली तो जानोगे,
फॅसे मकलजाल में,
बुनती रही जहाँ मन की मकड़ी,
भूलभुलैया से मायाजाल में,
श्रम न करना,बस सब है पाना,
कैसी भारी भूल है,
भ्रस्टाचार की नींव जो भरती,
बनाती जीवन शूल हैं,
भ्रटाचार ही उपजाता,
महंगाई और गरीबी रे,
यही बनाती निरंतर हताशा
और बेरोजगारी रे,
क्या इन कष्टो के हम सब,
जिम्मेवार नही,
कभी मौन में,कभी सहर्ष मन,
दिया इसका साथ नही,
क्या नही चाहत कुछ पाने की,
जिसके हम हकदार नही,
समय से प्रतिस्पर्धा की,
क्या कोई चाहत नही,
है सब भी यहाँ भी कारण,
समस्या उपजाने के,
मन से तेज सदा ही भागे,
कुछ अपने अफसाने में,
एक कदम क्यो न उठाएं,
अपने चंद प्रयासों से,
करे मन जरा नियंत्रित,
कुछ निश्चित अभ्यासों से,
न मौन से, न वाणी से,
भ्रटाचार बढ़ाना हैं,
सीमित कर आवश्यकता,
मदद दूजो की करना है
तब होगी वसुधा भी नई,
मुस्काते चेहरे होंगे,
अपने ही सब भाई बंधु,
एक परिवार सम संग होंगे।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी