ये कइसन जमाना आत हे …
ये कइसन जमाना आत हे,
प्रभु कइसन जमाना आत हे।
आज मनखे के हालात देख के,
मुड़ धरके रोना आत हे।।
हमर जमाना म खजानी खावन,
अब सब झन खजाना दबात हे।
आनी बानी के जर्दा- गुटका ,
खुलेआम सब खात हे।।
पचर-पचर थूकत हे अउ ,
राक्षस जइसन अंटियात हे–
पहिली के महतारी दूध पियाये,
अब तो बोतल ल दतात हे।
भरे जवानी म घर के लइका ,
मुँहू म शराब लगात हे।।
आज के बेटा दारू पीके,
दाई -ददा के अरथी उठात हे-
दाई ददा ल कलजुगिया बेटा,
लाली आँखी देखात हे।
सास ह नौकरानी बनगे,
अउ बहू ह हुकुम बजात हे।।
पंच परमेश्वर देखे नइ मिले,
चोरहा नियाव करात हे—
बाप के बात बेटी नइ सुने,
अउ पति के बात ल नारी।
गुरु के गोठ चेला नइ माने,
बेटा ह नइ माने महतारी।।
जेन ल देखबे तेन ह संगी,
बस अपनेच मरजी चलात हे–
कहाँ नंदागे सियान के गोठ,
देख सुन्ना होगे चौपाल।
गउ माता ह गरु होगे ,
अब खोजे नइ मिले गोपाल।।
कृषि अउ ऋषि के भुइंया,
आज बंजर होवत जात हे–
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)