लेखक की कलम से

सब धरती कागद करुं, लेखनी सब बनराय …

भाग – (4)

भारत में कोरोना मीटर बढ़ते ही जा रहा है। पूर्णबंदी में लोग खुद से ही मुक्त हो रहे हैं। और कोविड 19 ने भी मानो ठान लिया है कि छत्तीसगढ़ छोड़ने का नहीं ..उसे भी लग रहा है कि छत्तीसगढ़िये बहुत सादे सरल और संतोषी जीव हैं और उन्हें आदत है मेहमां पर पूर्ण समर्पण की .. तो वह भी हमारे इन गुणों के कारण खातिरदारी कराने लौट लौटकर आ जाता है ..ड़रती हूं कि ‘और लोगों’ की तरह यह भी स्थायी न हो जाए। आधे डर, आधे बल के साथ जिंदगी चल रही है। और लिखने का काम पहले से भी ज्यादा बढ़ गया है। कबीरदास जी की पंक्तियों को आदर्श मानकर “धरती सब कागद करुं, लेखनी सब बनराय। सात समुद्र की मसि करुं, ‘लॉकडाउन’ गुन लिखा न जाय। “चल रहा है …कभी पत्रिका ..कभी वाट्सएप ग्रुप, कभी ड़ायरी, कभी फेसबुक कभी..डिजिटल समाचार .. सबमें लेखन चल रहा है और फेसबुक लॉईव भी ..खैर…

इस लॉकडाउन ने दो बातें मुझे बहुत अच्छी तरह से समझा दीं हैं – पहला यह कि घर का काम करने से वजन कम नहीं होता और दूसरा घर के खाने से वजन कम नहीं होता। तीन महीने से काम कर करके थक गई हूं, कमर टूट गई, हाथों में दरारें दिखने लगीं पर ढ़ाई सौ ग्राम वजन भी कम नहीं हुआ उल्टे बढ़ गया। अब तो बस यही गीत गाते रहती हूं -” जाने कहां मेरा ‘फिगर’ गया जी ..अभी अभी यहीं था किधर गया जी” फिगर, फिटनेस की फिकर मुझे खाए जा रही है और नामुराद कोरोना जाने का नाम ही नहीं ले रहा है। जिम, योगा क्लास, ड़ांस क्लास का वो थिरकना मन को बैचेन कर रहा है और हम घुन्ना रहे हैं और पतिदेव भिन्ना रहे हैं।

काम ड़बल और पगार आधी ..अब आप सोच रहे होंगे पगार आधी कैसे ?? घर के काम के बदले मैने पतिदेव से कहा कि अब तो पगार लगेंगे ?? पतिदेव भी कम होशियार नहीं हैं उन्होंने भी कहा क्यों ?? मैं भी तो आधे काम करता हूं तो पगार का आधा हिस्सा तो मुझे भी मिलना चाहिए। अभी तक रोज इसी मे खिचखिच हो रही है कि वो आधा पैसा कौन किसको देगा ?? अब तो आत्मनिर्भरता के नये फंड़े भी आ गए हैं और मैं उसका भी धौंस देने लगी हूं आत्मनिर्भर बनो ..अपनी थाली खुद धोओ, अपनी रोटी खुद बनाओ ..तब कही जाकर आधी पगार देने में सहमति बनी है।

कुछ छूट के साथ शहर की वीरान सड़कें अब गुलजार हो रही हैं ..लोगों के घर के चूल्हे अब जलने लगे हैं। लोग अब कोरोना के साथ जीने की आदत बना रहे हैं कहते हैं न दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना। यही स्थिति है कोरोना का भय कुछ ज्यादा ही खत्म हो रहा है ..लोग निडरता से घूम रहे हैं ..सड़कों पर जाम लग रहा है ..और हर वो बुध्दिजीवी वर्ग जो समस्त नियमों का पालन कर रहा है वह अभी भी भयभीत है कि पता नहीं कल क्या हो ?? कुछ उड़ती उड़ती सी खबर आ रही है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने अब लॉकडाउन खूल सकता है …लॉकडाउन खूलने के बाद की भयावहता को सोचकर मन चिंतित है …

 

      ©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                          

 क्रमशः

 

Back to top button