लेखक की कलम से
नितांत अकेला ….
नितांत अकेला इंसान
दुनिया की भीड़ में
साथ चलने वाले महज़
उपयोग करते ज़रूरत पर
भीड़ नशे में है
कोई दिखावे के नशे में
कोई ग़रूर के नशे में
कोई वजूद के नशे में
अकेला वही है जो
किसी नशे में नहीं है
जिसे कोई अहंकार नहीं
भीड़ पर एतबार नहीं
जो जीना चाहता है
प्रेम के लिए
प्रेम जो दुर्लभ है
प्रेम जो अप्राप्य है
प्रेम जो भटकन है
प्रेम जो तिलस्म है
प्रेम जो उलझा है
अपनों के चक्रव्यूह में
शायद प्रेम अकेला है
नितांत अकेला
©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़