वो री गौरैया…
गौरैया एक घरेलू पंक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान रूप से हर जगह पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाली पक्षियों में से है। लोग जहां भी घर बनाते हैं सवेरे गौरैया के जोड़े वहां रहने पहुंच ही जाते हैं। इंसानों से इनका बहुत गहरा नाता है लेकिन आज इंसान ही उनके प्रेम को समझ नहीं पाया। कभी सुबह के
दिन गौरेया की चहचहाहट से खुलता था ।लेकिन धीरे-धीरे यह नन्हीं चिड़िया हमारे आस पड़ोस से गायब होती चली गई, न पेड़ बचे और न उन पर निर्भर छोटे-छोटे पक्षी गौरैया। भारत का सबसे संकटग्रस्त पक्षी है, गौरैया की कमी तो सब ने महसूस की है ।
सुबह सूर्य की किरणें,
धरातल पे पड़ती है।
तो वो सुनी दिखने लगी,
कुछ मन भी उदास रहता है।
सुबह जिनकी चहचहाहट से खुलता रहा है।
अब वो पंख,
पैरों के निशान आंगन में नहीं दिखते
सुबह की मधुर गीत शाम की सुनहरी आवाजें,
वर्षों बीत गई कानों में नहीं गूंजी,
वो री गौरैया तुम कहां चली गई?
लगता है पुरानी पीपल पर कौवा का हुआ बसेरा है,
नए पर गिद्धों ने डेरा डाला है,
कहां? पर घर बनाऊं
हर रोज पूछती हैं हमसे
कोई और विकल्प ढूंढ लो गौरैया,
लोग अब घरों में गौरैया नहीं
बिल्लियां, कुत्ते पालने लगे हैं।
हर रोज प्रश्न करती है,
तुम्हारे धन दौलत की भूखी नहीं है।
मेरा कोई मजहब तो नहीं है,
कोई चाह भी नहीं है।
थोड़ा सा दाना और थोड़ा सा पानी अगर इसे मिल जाए यह भी इस धरती पर बढ़ जाए।
©अजय प्रताप तिवारी चंचल, इलाहाबाद